कोरबा-बालकोनगर (खटपट न्यूज)। ‘‘देश के विकास में एल्यूमिनियम उद्योग की भागीदारी महत्वपूर्ण है। भारत सरकार की मेक इन इंडिया, 100 स्मार्ट सिटीज, 100 एएमआरयूटी सिटीज, बिजली की 24 घंटे निर्बाध आपूर्ति, 100 फीसदी ग्रामीण विद्युतीकरण, घरेलू अंतरिक्ष कार्यक्रम, 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करने जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाने और राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ी भूमिका निभाने के लिए एल्यूमिनियम सेक्टर के पास पर्याप्त क्षमताएं मौजूद हैं।’’ ये उद्गार भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं निदेशक श्री अभिजीत पति ने 24वें अंतरराष्ट्रीय नॉन फेरस मेटल्स-2020 वेबीनार में व्यक्त किए। वेबीनार में एल्यूमिनियम उद्योग के अनेक विशेषज्ञ मौजूद थे।
‘‘भारत में एल्यूमिनियम उद्योग का भविष्य’’ विषय पर आयोजित सत्र में श्री पति ने एल्यूमिनियम उद्योग की चुनौतियों और देश के विकास में एल्यूमिनियम धातु की भूमिका पर अपने विचार रखे। श्री पति ने कहा कि भारत के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोयला और पांचवा सबसे बड़ा बॉक्साइट भंडार है। इन संसाधनों के उत्कृष्ट प्रबंधन से देश को दुनिया में सबसे कम उत्पादन लागत वाले एल्यूमिनियम उत्पादक के तौर पर स्थापित करना संभव है। एल्यूमिनियम धातु की गुणवत्ता बरकरार रखते हुए इसे बार-बार रिसाइकल किया जा सकता है जिससे इसे ‘ग्रीन मेटल’ भी कहा जाता है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्टील के बाद एल्यूमिनियम धातु का बड़ा योगदान है। कार्बन फुटप्रिंट कम करने की वैश्विक कटिबद्धता की दृष्टि से भी एल्यूमिनियम महत्वपूर्ण है। देश में आठ लाख से अधिक लोग रोजगार के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से एल्यूमिनियम सेक्टर से जुड़े हैं वहीं 4000 से अधिक डाउनस्ट्रीम उद्योग निरंतर विकसित हो रहे हैं। वैमानिकी, प्रतिरक्षा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिसिटी, निर्माण, पैकेजिंग आदि अनेक उद्योगों में एल्यूमिनियम का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है।
श्री पति ने कहा कि दुनिया के विकसित देशों में एल्यूमिनियम की खपत अधिक होती है। भारत में प्रति व्यक्ति खपत ढाई किलोग्राम के स्तर पर है वहीं वैश्विक औसत 11 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है। चीन में प्रति व्यक्ति 25 किलोग्राम की खपत होती है। कम खपत के बावजूद देश के सकल घरेलू उत्पाद में एल्यूमिनियम का योगदान 2 प्रतिशत है। देश ने वर्ष 2022 तक सकल घरेलू उत्पाद में निर्माण सेक्टर का योगदान 25 फीसदी तक ले जाने का जो विजन तैयार किया है उस दिशा में देश के एल्यूमिनियम उद्योग का योगदान अहम है।
वर्तमान में देश में बॉक्साइट का उत्पादन 22 मिलियन टन प्रति वर्ष होता है जबकि मांग 26 मिलियन टन प्रति वर्ष की है। विस्तार परियोजनाओं से यह मांग प्रति वर्ष 55 मिलियन टन तक पहुंचने की संभावना है। बॉक्साइट खान नीलामी प्रक्रिया को अधिक युक्तिसंगत बनाने और बॉक्साइट की खोज में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने से देश के बॉक्साइट उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
श्री पति ने बताया कि चीन, मध्यपूर्व, रूस, कनाडा, नार्वे, आइलैंड जैसी दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने एल्यूमिनियम धातु को दीर्घकालिक रणनीतिक महत्व के धातु के तौर पर वगीकृत किया है। ये देश अपने घरेलू उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए अनेक सब्सिडी उपलब्ध कराते हैं। उनके लिए कच्चे माल और सस्ती ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है। ऋण और कर ढांचे को एल्यूमिनियम उद्योग के निरंतर विकास के अनुकूल बनाया जाता है। आज देश में ऐसा माहौल तैयार किए जाने की जरूरत है जिससे घरेलू एल्यूमिनियम उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने और आयात घटने की दिशा में मदद मिल सके। यह भी जरूरी है कि एल्यूमिनियम उद्योग के लिए बॉक्साइट और कोयले की पर्याप्त आपूति सुनिश्चित हो। विभिन्न प्रकार की कर दरों को युक्तिसंगत बनाया जाए।
वर्तमान में देश में एल्यूमिनियम की मांग प्रति वर्ष लगभग 4 मिलियन टन है जबकि घरेलू एल्यूमिनियम उद्योगों की कुल उत्पादन क्षमता 4.1 मिलियन टन प्रति वर्ष है। घरेलू उद्योग आसानी से देश की एल्यूमिनियम की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। बावजूद इसके देश की कुल जरूरत का 60 प्रतिशत एल्यूमिनियम आयात किया जाता है। प्राइमरी एल्यूमिनियम और स्क्रैप के मामले में देश पर्याप्त रूप से सक्षम है फिर भी भारत में स्क्रैप का 100 फीसदी आयात किया जाता है। इससे घरेलू उद्योगों की भागीदारी कमजोर होती है।
ट्रेड वार के कारण भारत एल्यूमिनियम और स्क्रैप का डंपिंग केंद्र बन गया है। अमेरिका और चीन ने अपने हितों के अनुरूप कर ढांचा तैयार किया है। आयात पर अमेरिका 10 फीसदी का शुल्क लगाता है जबकि अमेरिका से आयातित एल्यूमिनियम पर चीन में 25 फीसदी का शुल्क लिया जाता है। आज जरूरत इस बात की है कि रिसाइकलिंग उद्योग को अधिक व्यवस्थित बनाएं और एल्यूमिनियम उत्पादों और स्क्रैप के आयात में कमी करें। इसके साथ आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी करने की आवश्यकता है। गुणवत्ता, पर्यावरण और सुरक्षा के नजरिए से सख्त बीआईएस मानक तैयार किए जाने की जरूरत है ताकि गुणवत्ताविहीन आयात को हतोत्साहित किया जा सके।
वर्तमान में एल्यूमिनियम उत्पादन लागत का 15 से 17 फीसदी शुल्क लिया जाता है। एल्यूमिनियम का निर्यात बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य द्वारा लिए जाने वाले करों की दरों को अधिक युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है। नीति आयोग और खान मंत्रालय की अनुशंसा के मुताबिक एल्यूमिनियम उद्योग को कोर उद्योग के तौर पर वर्गीकृत कर और राष्ट्रीय एल्यूमिनियम नीति तैयार कर अनेक चुनौतियों से निपटा जा सकता है।
कैप्टिव पावर प्लांट वाले उद्योगों के लिए कोयले का आबंटन बड़ी चुनौती है। वर्तमान में सीपीपी के लिए मिलने वाले कोयले के लिए आईपीपी के मुकाबले 20 फीसदी अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। कई बार सीपीपी को मिलने वाले कोयले की आपूर्ति पर अस्थायी रोक लगा दी जाती है। इसके कारण उत्पादन लागत में काफी बढ़ोत्तरी हो जाती है। ऑक्शन लिंकेज के लिए कोयला मंत्रालय के परिपत्र के अनुसार एल्यूमिनियम जैसे उद्योगों के लिए प्रीफरेंशियल कोल लिंकेज ऑक्शन और ब्लॉक आबंटन की नीति से इस समस्या से निजात मिल सकती है। इसके साथ ही पावर सेक्टर के लिए 75 फीसदी और नान पावर सेक्टर के लिए 25 फीसदी की दर से रैक के माध्यम से कोयले की आपूर्ति की जा सकती है।
कोयले की ढुलाई में रैक की कमी भी लागत बढ़ने की दिशा में बड़ा कारण है। नान पावर सेक्टर में कोयले की दरों में अतिरिक्त प्रीमियम न हो। यदि कोयले के परिवहन के लिए रैक उपलब्ध न हो तब परिवहन की प्रकृति रेलवे से सड़क मार्ग किए जाने पर भी अतिरिक्त प्रीमियम का प्रावधान समाप्त होना चाहिए। एल्यूमिनियम की ढुलाई के लिए डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के विकास तथा रैक का प्राथमिकता के साथ आबंटन सुनिश्चित हो। रेलवे के प्रीफरेंशियल ट्रैफिक ऑर्डर में एल्यूमिनियम उद्योग को ‘डी’ श्रेणी से ‘सी’ श्रेणी में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।
श्री पति ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी को युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है। देश के कुल उत्पादन का 75 फीसदी एल्यूमिनियम का उत्पादन करने वाले राज्य उड़ीसा में इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी 30 पैसा प्रति किलोवॉट से बढ़कर 55 पैसा प्रति किलोवॉट के स्तर पर पहुंच गया है। इसे 30 पैसा प्रति किलोवॉट के मूल स्तर पर ले जाने की जरूरत है। सीपीसीबी के उत्सर्जन मानदंडों के अनुसार फ्लू गैस डीसल्फ्यूराइजेशन (एफजीडी) की स्थापना पर बड़ा निवेश होता है। ऐसे सीपीपी जो प्रचालन में हैं उन्हें सरकार एफजीडी की स्थापना के लिए क्लीन एनर्जी सेस के कोष में से सहयोग दे सकती है। एफजीडी की स्थापना के लिए आवश्यक उपकरणों के आयात शुल्क में छूट देकर भी लागत में कटौती की जा सकती है।