Wednesday, February 5, 2025
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पड़ोसी जिला की रेत से संवरता कोरबा,खुद के घाट खुलवा नहीं सके

0 राजस्व मंत्री के गृह जिला में भाजपाई भी खामोश,नुकसान सरकार का
कोरबा(खटपट न्यूज़)। अक्सर पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। कोरबा में भी पड़ोसी ही विकास कार्यों में काम आ रहा है। कोरबा शहर और आसपास के क्षेत्रों में सरकारी विकास कार्यों से लेकर निजी निर्माण कार्यों की भरमार है। इन कार्यों को अंजाम देने में रेत की कमी सबसे बड़ी बाधा बनी रही।


यूं तो कोरबा जिला रेत खनिज के मामले में संपन्न है लेकिन विभागीय अधिकारियों की अदूरदर्शिता तथा जरूरी तथ्यों को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाने की वजह या फिर कुछ और कारणों से जिले के रेत घाटों में सन्नाटा पसरा हुआ है। कहने को तो दो से तीन घाटों को संचालित करने की स्वीकृति मिली हुई है लेकिन यह काफी नहीं है। कोरबा, ऊर्जावान राजस्व मंत्री का गृह जिला भी है और विधानसभा क्षेत्र भी लेकिन उनके अपने गृह जिले में पिछले 1 साल से सरकारी दर पर रेत को लेकर हाय-तौबा मची हुई है। रेत के अभाव में महीनों से निर्माण कार्य भी अटके रहे तो निगम क्षेत्र में कराए जा रहे सौंदर्यीकरण कार्य को भी बट्टा लगता नजर आया। रेत के मसले पर जहां कोई भी बात पुरजोर तरीके से रखी नहीं जा सकी है वहीं वैध खनन और भंडारण की अनुमति किन कारणों से अटकी हुई है, इसे भी स्पष्ट नहीं किया जा सका है।
दूसरी तरफ भाजपा विपक्ष की भूमिका में है लेकिन वह रेत जैसे जरूरी मसले पर भी सशक्त और मुखर नहीं है। कोरबा में भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेतागण भी हैं। रेत की कीमत बहुत बढ़ाकर पिछले साल बेचने के खिलाफ धरना देने वाले न जाने क्यों इस मसले पर अबकी बार खामोश हैं?

0 दिन में भाग-दौड़, रात में लगातार…..
रेत न तो पक्ष देखता है ना विपक्ष, उसके लिए तो सब एक बराबर हैं लेकिन उसकी उपलब्धता आसान तरीके से हर वर्ग के लिए होनी चाहिए, यह सुनिश्चित करने का जिम्मा खनिज महकमे का है। उस पर निगरानी प्रशासनिक तंत्र करता है और राजस्व के नुकसान को रोकने का जिम्मा राजस्व विभाग का है। ऐसे में तीनों विभाग अपने दायित्व से जहां फिलहाल कटे-कटे से हैं वहीं रेत का संकट के दौर में पड़ोसी जिला जांजगीर-चांपा के ग्राम केराकछार का रेत घाट कोरबा शहर व आसपास के क्षेत्र में हो रहे निर्माण कार्यों का माध्यम व बड़ा सहारा बना हुआ है। बरमपुर का कादिर खान वह शख्स है जो केराकछार से कोरबा और कोरबा से केराकछार की लंबी दूरी अपने पास उपलब्ध संभवतः दो टिप्पर के माध्यम से दिन भर तय करवाते हुए लगातार न सिर्फ निर्माण स्थलों पर आपूर्ति करा रहा है बल्कि चुनौतियों से जूझकर रेत का भंडारण भी करा रहा है। उसके भंडारण स्थलों से ट्रैक्टरों में लादकर रेत दिन-रात, रात-रात भर जगह-जगह आपूर्ति की जा रही है। इस कार्य मे नेता पुत्र भी खास सहयोगी है। कोरबा के मौजूदा निर्माण कार्यों को गति देने में केराकछार और कादिर का योगदान नकारा नहीं जा सकता। विभागीय से लेकर प्रशासन के अधिकारी भी दबी जुबान में उसकी तारीफ करने से नहीं चूकते जो संकट के इस दौर में भी रेत मुहैया करा रहा है। उसे छोटे-मोटे विकास पुरुष की भी संज्ञा दी जा सकती है।

0 प्रस्ताव लंबित, जिम्मेदार खामोश

रेत घाटों को नगर निगम की निगरानी में, पंचायतों की निगरानी में संचालित किए जाने का प्रस्ताव लंबित है। घाट प्रारम्भ कराने ट्रेक्टर मालिक एसोसिएशन की चेतावनी बंदर घुड़की साबित हुई और फिर खामोश बैठ गए।12 खदानों को स्वीकृति का इंतजार है। इधर अब तक अनुमति मिल नहीं सकी है और बरसात नजदीक है। मानसून शुरू होते ही नदियों से रेत निकालना प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। इसके बाद सारे काम ठप हो जाएंगे। कार्य का होना जरूरी है और इस जरूरत को समझना प्रशासन तंत्र के लिए और भी आवश्यक है। इससे भी ज्यादा आवश्यक है कि जिस चीज की कमी बनी हुई है उसकी पूर्ति के लिए मार्ग प्रशस्त किया जाए, लेकिन इसके लिए पक्ष, विपक्ष, तीसरे सशक्त दल का दंभ भरने वाले अन्य राजनीतिक दलों के स्थानीय पदाधिकारियों, दिग्गज जनप्रतिनिधि होने का दम भरने वाले माननीयों के प्रतिनिधियों, बड़े-बड़े ठेकेदारों ने भी इस ओर से आंखें अब तक फेरी हुई है। यदि ये चाहते तो रेत घाटों को संचालित करने में आ रही दिक्कतों को दूर कराने के साथ-साथ घाटों को प्रारंभ कराने में भूमिका निभाई जा सकती है लेकिन ऐसा होता दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा। इसके कारण कई बड़े निर्माण सुस्त चाल हैं।

0 वहां बढ़ा है राजस्व, यहां सूखा
यह कहने में कोई संकोच नहीं ग्राम केराकछार को लगातार रेत परिवहन से इस वर्ष अन्य वर्षो की तुलना में कहीं ज्यादा रॉयल्टी की प्राप्ति हुई होगी, जबकि यह रॉयल्टी कोरबा जिले के हिस्से में आनी चाहिए थी। रेत घाटों के जरिए होने वाली राजस्व आय का बहुत बड़ा नुकसान विभागीय अधिकारियों की अदूरदर्शिता के कारण उठाना पड़ रहा है। विभागीय अधिकारी खटपट न्यूज़ से लगातार दूरियां बनाए हुए हैं। संवादहीनता के कारण इनसे किसी भी तरह की सकारात्मक जानकारियां भी निकाल पाना टेढ़ी खीर साबित होता है।

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