Thursday, February 6, 2025
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निजी समझ खरीदा सरकारी जमीन, बिना चढ़ावा लटका नियमितीकरण

0 जो चक्कर में फंस गए वो कर्ज लेकर दे रहे खर्चा-पानी
कोरबा(खटपट न्यूज़)। कोरबा शहर सहित जिले के विभिन्न इलाकों में सरकारी जमीनों पर नया कब्जा कर आगामी दिनों में पट्टा हासिल करने की जुगत में होड़ तो मची हुई है लेकिन कुछ ऐसे भी मामले हैं जिनमें धोखे से या जानबूझकर सरकारी जमीन को निजी तौर पर बेच दिया गया। निजी समझकर बेची गई सरकारी जमीन खरीदने और उस पर निर्माण कर लेने के बाद पता चलता है कि यह जमीन तो सरकारी है। इसके बाद शासन की योजना के तहत उस सरकारी जमीन को निजी बनाने के लिए नियमितीकरण कराने चक्कर पर चक्कर लगाने खरीदार मजबूर हैं। जमीन खरीद लिया, रजिस्ट्री हो गई, नामांतरण हो गया, घर बना लिए और लाखों रुपए फूंक भी दिए लेकिन जब बात नियमितीकरण की आई तो सारी प्रक्रिया कर लेने के बाद भी मामला कलेक्ट्रेट के एक दफ्तर में जाकर लटक गया। डेढ़ से 2 साल में भी नियमितीकरण की फाइल आगे नहीं बढ़ सकी है। नाम उजागर न करने की शर्त पर समस्या झेल रहे लोगों ने बताया कि दफ्तर में जमीन और हैसियत देखकर लाख से 4 लाख रुपये तक का चढ़ावा इनडाइरेक्ट बिचौलिए कर्मी के जरिये मांगा जा रहा है। अब नियमितीकरण कराना है तो इसे देना ही पड़ेगा चाहे रो कर दो, चाहे हंसकर। इसमें तो कुछ ऐसे लोग भी फंसे हैं जो अपनी कहीं की संपत्ति बेचकर जमीन खरीदे और अब कर्जा लेकर भेंट-चढ़ावा की रस्म अदायगी करने के लिए मजबूर हैं और इसके बाद शासन को जमीन की कीमत अनुसार कई गुना राशि भुगतान करनी होगी,तब कहीं जाकर नियमितीकरण हो पायेगा।
कहा तो यहां तक जाता है कि अगर कोई एप्रोच लगाया या गुजारिश की अथवा बड़े साहब से गुहार लगाई तो कुछ ना कुछ कमी बताकर काम रोक दिया जाएगा। मरता क्या न करता, और मजबूरी में जो ना करना पड़े वह कम है, इसी तर्ज पर अब तथाकथित लोग चढ़ावा देने के लिए मजबूर किये हुए हैं।
0 नियमितीकरण बना कमाई का जरिया
सरकार की योजना लोगों को राहत पहुंचाने के लिए है लेकिन चंद लोगों के कारण यह योजना अवैध तरीके से कमाई का जरिया बन चुकी है। वैसे भी जब काम निकालने की नौबत आती है तो कोई भी अपना बिगाड़ नहीं चाहता और इसी मजबूरी का फायदा उठाने की कलाकारी चंद लोग जानते हैं। शिकायत करने वाला अगर शिकायत भी करे तो उसे इस बात पर संदेह है कि सुनवाई होगी या नहीं? उसे मानसिक तौर पर इतना हतोत्साहित कर दिया जाता है कि वह शिकवा- शिकायतों से परे रहकर अपना पेट काटकर ही सही भेंट-चढ़ावा देकर काम निकालना चाहता है। अब यह रहस्यमय है कि यह चढ़ावा साहब के लिए रहता है या साहब की आड़ में अधीनस्थ और मध्यस्थ अपनी जुगत भिड़ाये हैं। लेकिन चंद अधिकारी और कर्मचारियों के कारण न सिर्फ मुख्यमंत्री की संवेदनशील मंशा प्रभावित हो रही है बल्कि किरकिरी भी होती है।

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