Saturday, December 21, 2024
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भुइंया साफ्टवेयर की आईडी हैक कर रिकार्डों में ऑनलाइन छेड़छाड़ मामले में जांच हुई तेज


कोरबा (खटपट न्यूूज) । राज्य सरकार के भुइंया साफ्टवेयर की आईडी हैक कर रिकार्डों में ऑनलाइन छेड़छाड़ मामले में जांच तेज हो गई है। पुलिस ने जहां दोनों पटवारियों का बयान दर्ज किया है, वहीं 5 सदस्यीय जांच कमेटी जिला प्रशासन ने गठित की है। यह कमेटी विभिन्न बिंदुओं पर जांच के साथ इस बात का पता लगाएगी कि आखिर पटवारियों की आईडी हैक कैसे हुई?
जानकारी के मुताबिक इस मामले की तह तक जाने के लिए कलेक्टर श्रीमती किरण कौशल ने जांच कमेटी गठित कर दी है जो अनेक बिंदुओं पर जांच-पड़ताल करेगी। एसडीएम कमलेश नंदिनी साहू व जिला विज्ञान एवं सूचना (एनआईसी) अधिकारी हेमंत जायसवाल के नेतृत्व में जांच होगी। श्री जायसवाल ने बताया कि जांच के संबंध में कलेक्टर से निर्देश प्राप्त हुए हैं और जांच में जो भी तथ्य सामने आएंगे, प्रतिवेदन कलेक्टर को सौंपा जाएगा।
दूसरी ओर तहसीलदार सुरेश कुमार साहू ने बताया कि उक्त जमीनों के नामांतरण की प्रक्रिया रोक दी गई है। प्रकरण बनाकर पूरे मामले की पड़ताल करने के साथ ही इस पूरी रजिस्ट्री, खरीदी-बिक्री को शून्य करेंगे और जमीन वापस सरकार को जाएगी। सरकारी जमीन को बेचने और खरीदने वालों पर शिकंजा कसा जाएगा। मामले में इस निष्कर्ष तक भी पहुंचने का काम किया जाएगा कि आखिर पटवारी की आईडी हैक करने के लिए संबंधित हैकर्स को पासवर्ड कैसे मिला और जमीन बेचने वालों की ऋण पुस्तिका किस तरह बनी? रजिस्ट्रार कार्यालय ने भी बिना जांच-पड़ताल किए रजिस्ट्री कर दी। यह देखने की जरूरत भी नहीं समझी कि जो जमीन रिकार्ड में ऑनलाइन सरकारी दर्शित हो रही है, आखिर उसकी खरीद-बिक्री कैसे हो सकती है?
याद रहे कोरबा अनुविभाग के अंतर्गत ग्राम समरकना, कोल्गा, चिर्रा की 29.34 एकड़ सरकारी जमीन बेचे जाने के मामले में हल्का नंबर 47 के पटवारी भूपेंद्र सिंह मरकाम एवं हल्का 48 के पटवारी मंजीत लकड़ा की रिपोर्ट पर श्यांग पुलिस ने सरकारी जमीन बेचने वाले मंगल सिंह यादव, जगन्नाथ यादव, रवि कुमार एवं रामलाल धोबी के विरुद्ध धारा 420, 467, 468, 471, 34 भादवि के तहत अलग-अलग 4 प्रकरण दर्ज किया है। प्रकरण जांच में लेने के साथ ही आगे की कार्रवाई की जा रही है।
भुइंया साफ्टवेयर पर काम करने के लिए सभी पटवारियों को अलग-अलग आईडी दिए जाते हैं, जो उनके अलावा दूसरे किसी को पता नहीं होता। यह बड़ा ही रहस्यमय और जांच का विषय है कि आखिर दोनों पटवारियों ने अपनी आईडी किससे और क्यों शेयर की, और यदि किसी को नहीं बताया तो यह उक्त जालसाजों तक कैसे पहुंचा? बता दें कि शासकीय अनेक महत्वपूर्ण दफ्तरों में अधिकारियों-कर्मचारियों और काम के सिलसिले में आने वालों के अलावा मध्यस्थों का भी जमावड़ा बेरोक-टोक लगा रहता है। पटवारियों का दफ्तर भी इसमें शामिल है। यहां फरियादी कम, पटवारी के सहयोगकर्ता के रूप में जमीनों की दलाली के कारोबार से जुड़े लोग ज्यादातर देखे जाते हैं। कुछ बाहरी लोग भी विश्वासपात्र बनकर दफ्तर व दस्तावेजों के बीच भी घुसे रहते हैं। यहां तक कि पटवारी को मामलों की जानकारी नहीं रहती लेकिन दलालनुमा लोग सारी जानकारी पटवारी को अपडेट कराते रहते हैं। सीमांकन, बटांकन से लेकर अनेक पटवारी स्तर के कार्यों में इनका सीधा हस्तक्षेप रहता है। हो ना हो ऐसे ही हस्तक्षेपकर्ताओं की बदौलत गोपनीय आईडी लीक हुई हो।

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