Saturday, July 27, 2024
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Homeकोरबामहिला बाल विकास मेें हो रहे भ्रष्टाचार की कलेक्टर से शिकायत

महिला बाल विकास मेें हो रहे भ्रष्टाचार की कलेक्टर से शिकायत

कोरबा। जिले में एकीकृत महिला एवं बाल विकास विभाग के अधीन संचालित हो रहे आंगनबाड़ी केन्द्रों में शासन की ओर से जारी योजनाओं एवं उनकी राशि में भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आने पर पूर्व एमआईसी सदस्य एवं पार्षद दिनेश सोनी ने कलेक्टर सहित मुख्यमंत्री, महिला बाल विकास मंत्री एवं मुख्य सचिव को जांच एवं कार्यवाही हेतु पत्र प्रेषित किया है। पार्षद ने भवनयुक्त आंगनबाड़ी केन्द्रों में पानी के लिए नल कनेक्शन, शौचालय निर्माण की जरूरत भी बताई है।
नगर पालिक निगम क्षेत्र के वार्ड क्र. 11 के पार्षद दिनेश सोनी ने कलेक्टर श्रीमती किरण कौशल को प्रेषित शिकायत में अवगत कराया है कि मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह से अब तक जारी कोविड-19 लॉकडाउन में आंगनबाड़ी केन्द्रों के शून्य से 3 वर्ष के बच्चों एवं शिशुवती माताओं के लिए सूखा राशन वितरण की व्यवस्था जून माह के द्वितीय सप्ताह में कराई गई। उन्होंने वार्ड में राशन वितरण के दौरान पाया कि आंगनबाड़ी केन्द्रों में दर्ज व लाभान्वित हितग्राही की अपेक्षा सूखा राशन की मात्रा महज 35-40 प्रतिशत ही प्रदाय की गई और कम मात्रा में प्रदत्त राशन का सभी हितग्राहियों में वितरण सुपरवाइजर के निर्देशानुसार कार्यकर्ताओं द्वारा सुनिश्चित किया गया। ऐसे में हितग्राहियों के लिए 26 दिन के मान से निर्धारित पोषण आहार सामग्री पूरी मात्रा में न मिलकर आधा मात्रा में ही प्रदाय हो सका है। इस पूरे सूखा राशन की आपूर्ति जिले भर में एक ही फर्म/समूह के जरिए एक परियोजना अधिकारी विशेष द्वारा कराई गई है जिसकी राशि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के निजी खाते में डालकर उनसे प्राप्त किया गया। इसकी जांच होनी चाहिए कि सूखा राशन की मात्रा कम क्यों दी गई व कितना भ्रष्टाचार हुआ है जबकि खनिज न्यास मद में पैसे की कोई कमी नहीं है। लॉकडाउन में रेडी-टू-ईट फूड का भी नियमित वितरण प्रतिमाह प्रथम व तृतीय मंगलवार को नहीं हो रहा है। माह में एकाध बार ही वितरण से पोषण योजना प्रभावित हो रही है और निर्माणकर्ता समूह फर्जी बिल लगाकर मालामाल हो रहे हैं।
0 पोताई व मरम्मत के नाम पर घोटाला
पार्षद दिनेश सोनी ने बारिश के मौसम में आंगनबाड़ी केन्द्रों की पोताई व मरम्मत के नाम पर घोटाला की संभावना व्यक्त करते हुए शिकायत की है कि प्रति केन्द्र 6 हजार रुपए कार्यर्ताओं के खाते में डालकर इस पूरी राशि को देने कई सुपरवाइजरों द्वारा परियोजना अधिकारी के हवाले से कार्यकर्ताओं पर दबाव बनाने की शिकायतें मिली हंै। केन्द्रों के बाहरी दीवार पोतकर काम खत्म कर दिया गया है, कोई मरम्मत नहीं कराई गई है। पोताई भी इतनी घटिया कि पहले के सुुंदर स्वरूप को बदल कर भद्दा कर दिया गया है। कार्यकर्ताओं से स्वयं खर्च कर केन्द्र में किए जाने वाले सुपोषण चौपाल, फोटोकापी, फोटोग्राफी, फोटो धुलाई व अन्य चिल्हर खर्च के एवज में मिलने वाली फ्लेक्सी फंड व स्टेशनरी के नाम पर जमा राशि को भी निकाल कर देने कहा जा रहा है। शहरी परियोजना कार्यालय में कार्यरत कम्प्यूटर ऑपरेटर को एमपीआर व अन्य डाटा एंट्री कराने के एवज में प्रति कार्यकर्ता 30 रुपए भी सुपरवाइजरों द्वारा लिए जाते हैं जो इस आपरेटर को देना बताया जाता है।

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