0 इस बार भी कांग्रेस संगठन ने नहीं दी तवज्जो तो बढ़ी नाराजगी
कोरबा(खटपट न्यूज़)। राजनीति में वंशवाद की परंपरा को खत्म करने में कुछ खास सफलता नहीं मिलती दिख रही है। कोरबा जिले की राजनीति भी इससे अछूती नहीं है जिसका उदाहरण कटघोरा विधानसभा में सामने आया है। यहां कांग्रेस के पूर्व विधायक बोधराम कंवर ने अपनी सत्ता का उत्तराधिकारी पुत्र पुरुषोत्तम को बनाया है। पिछले चुनाव में एक बार मौका देने की बात हुई किंतु इस बार फिर से पुरुषोत्तम को ही टिकट दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया गया। इस बार प्रत्याशी घोषणा से पहले यह मांग पुरजोर तरीके से उठाई गई कि कटघोरा विधानसभा जो कि सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है, यहां आदिवासी या दूसरे वर्ग का प्रत्याशी न उतर कर अन्य पिछड़ा वर्ग अथवा सामान्य वर्ग से दावेदार को मौका दिया जाना चाहिए। कटघोरा विधानसभा की विडम्बना है कि सामान्य सीट पर ओबीसी या सामान्य वर्ग के दावेदार को कांग्रेस से टिकट नहीं मिली बल्कि आदिवासी वर्ग से ही उम्मीदवार उतारे जाते रहे हैं। यहां सामान्य और पिछड़ा वर्ग के बहुसंख्यक करीब 70 फीसदी मतदाता कई वर्षों से कांग्रेस घोषित आदिवासी वर्ग के प्रत्याशी को चुनते आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा सीटों में कटघोरा ही एकमात्र ऐसी सीट है जहां सामान्य या OBC वर्ग से प्रत्याशी कांग्रेस ने कभी नहीं उतरा। जबकि दूसरे विधानसभा का जिस वर्ग के लिए आरक्षण हुआ है, वहां उसी वर्ग के प्रत्याशी घोषित किए गए हैं। सामान्य सीट से ओबीसी या सामान्य को ही टिकट दी गई है किन्तु कटघोरा विधानसभा से पुरुषोत्तम कंवर को फिर से प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर पहले व बाद में भी विरोध के स्वर गूंजे हैं। इसके विपरीत भाजपा ने OBC के लखनलाल देवांगन और अब प्रेमचंद पटेल को अवसर दिया है।
0 पृथक जिला की मांग,भूविस्थापितों की समस्याओं पर नाराजगी
कटघोरा विधानसभा में एक बड़ा मुद्दा कटघोरा को पृथक जिला बनाने का आज भी कायम है। यहां ADM और ASP स्तर का अधिकारी बैठाने के लिए शासन से निर्देश भी जारी कर दिए गए लेकिन निर्देश के बाद भी यहां एडिशनल एसपी की पदस्थापना नहीं हो सकी है। विधायक इस दिशा में कुछ खास तो नहीं कर सके लेकिन शासन के निर्देश पर पहले एडीएम के रूप में विजेंद्र पाटले ने अपना कार्यभार जरूर संभाला। दूसरी तरफ कोयला खदानों की बहुलता विधानसभा क्षेत्र में होने के कारण भूविस्थापितों की नौकरी,पुनर्वास, रोजगार, बसाहट से लेकर सड़क, बिजली, पानी की मूलभूत समस्याएं वर्षों से कायम हैं जिनका निराकरण के लिए पूर्व के कार्यकाल में कोई खास काम नहीं हुआ। इस वर्ग के लोगों को कोई खास उम्मीद नहीं है कि पुरुषोत्तम कंवर कोई चमत्कार करके दिखा पाएंगे। 5 साल तक सत्ता की चाबी हाथ में होने के बाद भी पुरुषोत्तम कंवर ने कोई ऐसा काम करके नहीं दिखाया, जिससे क्षेत्र के भूविस्थापितों का भला हुआ हो या उन्हें फीलगुड हुआ हो। भूविस्थापितों को अपने अधिकारों के लिए अलग-अलग मंच और श्रमिक संगठनों के बैनर तले आवाज बुलंद करनी पड़ी है लेकिन पुरुषोत्तम वर्षों से लंबित मुद्दों पर कभी भी खुलकर सामने नहीं आए, इस बात से भूविस्थापित वर्ग में खासी नाराजगी व्याप्त है। इसके अलावा कटघोरा विधानसभा क्षेत्र में ग्रामीणजनों को सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझते हुए आज भी देखा जाता है। सात बार के विधायक रहे बोधराम कंवर भी अपने कार्यकाल में कटघोरा विधानसभा की तस्वीर बदलने के लिए कुछ खास करते नहीं दिखे और वही ढर्रा पुरुषोत्तम कंवर के द्वारा अपनाए जाने का आरोप लगाते हुए भूविस्थापितों ने समर्थन नहीं देने का मन बना लिया है।
0 BJP के प्रेमचंद के लिए भी जीत आसान नहीं
इधर दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी प्रेमचंद पटेल को लेकर भी कोई खास रुचि क्षेत्र के मतदाताओं में नहीं दिख रही है। प्रेमचंद पटेल को टिकट दिए जाने से भाजपा संगठन के ही खेमे में असंतोष के स्वर हैं जो पिछले दिनों सामने भी आए और भीतर ही भीतर प्रेमचंद पटेल के विरुद्ध में काम होने लगा है। प्रेमचंद पटेल की राह कटघोरा विधानसभा में ठीक उसी तरह आसान नहीं है जैसा कि रोड़ा पुरुषोत्तम के लिए अटकाया जाएगा।
0 अमित जोगी लड़ सकते हैं चुनाव, तो बदलेगा समीकरण
इस बीच चर्चा है कि जोगी कांग्रेस यहां अपनी दखल दे सकती है और अमित जोगी कटघोरा से विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। यदि अमित जोगी यहां से चुनाव लड़ते हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस और भाजपा के बिखरे और नाराज लोगों के वोट कहीं ना कहीं अमित जोगी की झोली में जा सकते हैं। वैसे निर्वाचन आयोग ने नोटा का भी प्रावधान ईवीएम में किया है। इस बार के बनते-बिगड़ते समीकरणों में यदि नोटा का बटन ज्यादा दबा तो उसमें भी कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि पसंद के प्रत्याशी नहीं मिलने से जनता थोपा हुआ प्रत्याशी इन्हें मानकर चल रही है।