इस प्रक्रिया का विरोध करते हुए बीमा कर्मचारियों ने आज देश भर में अपने परिजनों के साथ विरोध दर्ज किया. मध्य क्षेत्र के रायपुर, भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, शहडोल, सतना, जबलपुर, बिलासपुर मंडलों सहित दोनों प्रदेश की 140 से अधिक शाखा इकाइयों में भी प्रदर्शन आयोजित किए गए. बीमा कर्मियों ने कोयला, रक्षा, बैंक सहित देश के सार्वजनिक उद्योग का निजीकरण का आत्मघाती फैसला वापस लेने, साधारण बीमा कंपनियों में विनिवेश रोकने, बीमा क्षेत्र में एफडीआई वृद्धि वापस लेने, बीमा प्रीमियम पर जीएसटी समाप्त करने, पेंशन क्षेत्र में एफडीआई रोकने, श्रम कानून में परिवर्तन वापस लेने की भी मांग की.
कामरेड महापात्र ने कहा कि एलआईसी ने देश के औद्योगिक विकास और राष्ट्र निर्माण में अतुलनीय भूमिका अदा की है, जो आज भी जारी है. पॉलिसी धारक की संख्या के मामले में देश के सबसे बड़े बीमाकर्ताओं के रूप में उभरने और विकास करना पूरी तरह से आंतरिक संसाधनों को पैदा करने के माध्यम से किया गया है. एलआईसी ने आज 32 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति का निर्माण किया है. यह विस्तार बीमा धारक के पैसे से हुए है अर्थात एलआईसी ने आपसी लाभ वाले समाज की तरह काम किया है. जिसकी एलआईसी के एक हिस्से को बाजार में बेचने का निर्णय लेते समय अनदेखी की जा रही है. सबसे ख़तरनाक बात यह है कि भारत सरकार जो इसकी अल्पसंख्यक हिस्से की मालिक है असली मालिक आम बीमा धारक है और उन बीमा धारकों की अनुमति के बगैर इसके हिस्से को बाजार में बेचने का कदम उठा रही है.
जीवन बीमा व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण किया गया, तो उसका उद्देश्य था जनता की छोटी बचत को एकत्र कर देश के विकास के लिए दीर्धकाल निवेश जुटाना और आम जनता के वंचित तबके तक बीमा का विस्तार कर बीमा धारक को जोखिम की सुरक्षा के साथ उनके निवेश पर एक अच्छा लाभांश उपलब्ध कराना. एलआईसी ने इसे बखूबी निभाया. जनता का पैसा जनता के लिए की अवधारणा पर उसने काम किया, लेकिन सरकार द्वारा इसके हिस्से को बाजार में बेचने का निर्णय जो अंततः निजीकरण के रास्ते पर बढ़ने का कदम है, इससे यह उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा. उसका सामाजिक उद्देश्य बदलकर निजी शेयर धारकों को अधिकतम लाभ पहुंचाना हों जाएगा जो 40 करोड़ बीमा धारक या राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक होगा.