Thursday, February 6, 2025
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कोरबा:राशन कार्ड बनवाने दिए 3-3 हजार,गरीबी में आटा गीला…देखें वीडियो!

कोरबा (खटपट न्यूज)। सरकार द्वारा गरीबों के हितार्थ योजनाओं के क्रियान्वयन कराने के साथ ही लाभान्वित करने के लिए समय-समय पर निर्देशित किया जाता है। प्रशासन स्तर पर भी पात्र लोगों को लाभान्वित करने के निर्देश दिए जाते हैं लेकिन शासन व प्रशासन के निर्देश के बावजूद गरीबों को भी योजनाओं का लाभ लेने के लिए अपनी अंटी (जेब) ढीली करनी पड़ती है। गरीबी में भी गरीबों का आटा गीला करने वालों की कमी नहीं है और ऐसा ही मामला देर से ही सही पर उजागर हुआ है। ग्रामीण लोगों का राशनकार्ड बनवाने के एवज में 3-3 हजार रुपए लेने का खुलासा खुद उन्होंने किया है।

यह मामला कोरबा जिले के करतला जनपद पंचायत अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत सुपातराई के आश्रित ग्राम रींवाबहार, चीताखोल में सामने आया है। यहां की महिलाओं राजकुमारी, शनि बाई, धन बाई आदि ने बताया कि राशन कार्ड बनवाने के लिए उन्होंने 3-3 हजार रुपए खर्च किए हैं। शनि बाई ने बताया कि उसने आवेदन जनपद में जमा नहीं किया था बल्कि अशोक श्रीवास नामक व्यक्ति को आवेदन दिया था जिसने 3 हजार रुपए लेकर राशन कार्ड बनवाया।

https://youtu.be/50JqJuqlNyE


राशन कार्ड जो कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए उनके अनिवार्य दस्तावेजों का एक हिस्सा बन चुका है और राशन से लेकर शिक्षा सहित अन्य योजनाओं का लाभ लेने के लिए जरूरी है, उसे बनवाने के लिए आज भी पापड़ बेलने पड़ते हैं। कई ऐसे आवेदक भी हैं जिनके आवेदन महीनों से पेंडिंग पड़े हैं। इसके पीछे कुछ वजह दस्तावेजों की कमी का हो सकता है तो बड़ी वजह चढ़ावा भी है।

https://youtu.be/KaYwWjq6VAE

आवेदन जमा करने के बाद इसका सत्यापन और एक-दो टेबल पर घूमने के दौरान आगे बढ़ाने से लेकर कार्ड प्राप्त करने तक भेंट देना पड़ता है। आवेदक दफ्तर का चक्कर स्वयं लगाए तो भी उसे चढ़ावा देना पड़ता है और कामकाज का नुकसान अलग। इस नुकसान से बचने के लिए सरकार ने सुविधा सहज तो की है लेकिन सीधे तौर पर भी जनपद व अन्य कार्यालयों में जमा होने वाले आवेदन बिना वजन के धूल खाते रहते हैं या फिर आवेदक को बेवजह कोई न कोई बहाना बताकर घुमाया जाता है।

https://youtu.be/4sYohDd-4Y4

बहरहाल इन ग्रामीणों नेे यह तो साफ कर दिया है कि सरकार की योजना का लाभ लेने के लिए पात्र होने के बाद भी उन्हें राशि खर्च करना पड़ेगा, चाहे इसके लिए कर्ज करना पड़े या अपनी जरूरतों को कम करके रुपए देना पड़े। यह कोई एक पंचायत का हाल नहीं बल्कि अधिकांश पंचायतों से लेकर निकाय क्षेत्रों में भी होता आ रहा है। हजारों रुपए का वेतन पाने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भी नीयत जरा से रुपयों के लिए डोल जाती है क्योंकि सामूहिक रूप से यह रकम काफी बड़ी हो जाती है।

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