कोरबा(खटपट न्यूज़)। कोरबा शहर के रेत घाटों में खुली छूट दी गई है। भले ही इससे अधिकारी इंकार करते हैं लेकिन हकीकत बयां हो ही जाती है। मोतीसागर पारा घाट के प्रवेश द्वार नाका का विधिवत तौर पर सीलमुक्त होना इसका प्रमाण है जहां काम चलाऊ लगाए गए ताला को खोलकर घाट से रेत निकाली जाती है। हालांकि बहाना भंडारित रेत का होता है पर इसकी आड़ में खेल हो रहा है। विभागीय सूत्रों की मानें तो इस घाट का ठेका खत्म हो चुका है लेकिन रीन्यूवल नाम की चिड़िया बिठाई जा रही है। रात 10 बजे के बाद घाट गुलजार हो रहा है,पर इससे भी इंकार है क्योंकि कार्यवाही करने में हाथ बंधे हैं। रात के अंधेरे में कहानी हो रही है तो प्रमाण मिलना ही मिलना है जो नजर आ ही गया। शहर के ही राताखार में हसदेव नदी से 5 अगस्त को रात करीब 12 बजे राताखार रेत खदान (घाट) से अवैध रेत उत्खनन कर परिवहन किया गया। ट्रेक्टर के ड्राइवर द्वारा बताया गया कि यह अवैध रेत कलेक्टर कार्यालय के परिसर में ले जाया जा रहा है। इस बात में कितनी सच्चाई है,यह तो जांच में पता चलेगा,लेकिन एक बात तो तय है कि रेत का अवैध उत्खनन/परिवहन कर चोरी जारी है। यह बात और है कि इसे दिन छोड़-छोड़ कर रात में किया जा रहा है ताकि पकड़ में न आ सकें और इस तरह की चोरी को संरक्षण दे रहे लोग भी सुरक्षित रहें। वार्ड के प्रतिनिधियों को भी जानकारी है लेकिन कहीं दबाव तो कहीं मतलब की तलाश ने रोक दिया है कि कौन सा अपने घर से जा रहा है। दूसरी ओर पुलिस अधिकारियों का कहना है कि घाट पर कोई अवैध काम नहीं हो रहा है,सब बन्द है और इधर राताखार से निकली रेत पुलिस चौकी के सामने से होकर गुजर जाती है। आखिर इतनी रात कौन सा भंडारण खुला रहता है जहां से रेत लाई गई? वह भी बिना रॉयल्टी के।
वैसे यह हाल सिर्फ शहर में ही नहीं है बल्कि उपनगरों और ग्रामीण अंचलों में भी यह काम दबंगई से स्थानीय सांठगांठ में हो रहा है। इन इलाकों के लोग भी परेशान हैं रेत की चोरी से। अवैध रेत के लिए अमानक तरीके से जहां से पाए वहां से खुदाई कर दी जा रही है जो हादसों की वजह भी बनता है। रॉयल्टी चोरी कर सरकार का नुकसान अलग से हो रहा है। हकीकत तो यही है कि विभागीय अधिकारी से लेकर पुलिस अधिकारी भी आंखों में धूल की बजाय रेत झोंकने में लगे हैं। खनिज संपदा को यूं ही लूटने की छूट दे दी गई हो तो भला किसको कानून का भय रहेगा जबकि अभी रेत खनन पर एनजीटी के निर्देशानुसार प्रतिबंध लगा हुआ है। जब कप्तान ने कह दिया है कि अवैध काम करने वालों में पुलिस का भय होना चाहिए तो यह भय रेत के चोरों में क्यों नहीं दिखता?सच तो यह है कि अधीनस्थ ही अपने दोनों शीर्ष मुखिया को गुमराह करने पर तुले हैं। अवैध कारोबारियों के ही बीच से चर्चा निकली है कि दोनों साहब तो नए हैं, मगर चिंता की बात नहीं, पुराने वाले सब संभाल रहे हैं। फिलहाल समानान्तर व्यवस्था में अपनी-अपनी टीम बनाकर सेटिंग का खेल जारी है। बता दें कि राताखार के लिए प्रमोद, अंकुर और आदि के द्वारा सिंडिकेट बनाकर काम किया जा रहा है और यह स्थानीय पुलिस व माइनिंग से छुपा हो ऐसा असंभव है।