कोरबा(खटपट न्यूज़)। एक ओर जहां प्रशासन चंद सरकारी स्कूलों को कान्वेंट की तर्ज पर विकसित करने के लिए काम कर रहा है, यहां रंग-रोगन व सजावट में लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं किंतु पढ़ने के लिए आने वाले निर्धन बच्चों की सुरक्षा और सुविधा पर स्कूल प्रबंधन ध्यान नहीं दे रहे। भले अपने अधिकारियों को सब कुछ ओके बताते हों और अधिकारी इन पर आंख मूंदकर भरोसा भी करते हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
इसका एक उदाहरण गुरुवार को दोपहर के वक्त देखने को मिला जब शहर के मध्य स्थित शासकीय प्राथमिक शाला कोरबा टाउन में भोजन अवकाश के दौरान खेलते वक्त एक बच्चा मामूली रूप से चोटिल हो गया। उसे दाएं घुटने में चोट आई और कुछ हिस्सा छिल गया। बच्चा रोने लगा तो उसे चुप करा दिया गया लेकिन इस स्कूल में उसके जख्म पर लगाने के लिए न तो मलहम थी और ना ही पट्टी। उसके पिता को सूचना दी गई जो मौके पर पहुंचे और बच्चे को घर ले गये। स्कूल में फर्स्ट-एड-बॉक्स के संबंध में पूछने पर उसके पिता ने बताया कि स्कूल में मलहम-पट्टी है लेकिन मैडम ने एक्सपायरी डेट का होना बताया है।
अब भला लाखों रुपए यूं ही खर्च होने वाले सरकारी स्कूल में 100-50 रुपए की मलहम और पट्टी का नसीब नहीं होना या एक्सपायरी डेट का होने के बाद भी नए डेट का खरीद कर नहीं रखना आखिर किसकी लापरवाही को दर्शाता है? वैसे भी इस स्कूल में झांकने की फुर्सत न तो डीईओ को है न बीईओ को और यहां अव्यवस्था का आलम गाहे-बगाहे क्या अक्सर नजर आ ही जाता है। यदि कोई यहां की व्यवस्था पर उंगली उठाए तो उसे ही घेरने की कोशिश यहां का स्टाफ करता है। स्कूल प्रबंधन की मनमानी काफी बढ़ी हुई है। वैसे इस पूरे मामले से अवगत कराने डीईओ जीपी भारद्वाज को फोन किया गया तो न रिसीव किये न कॉल बैक। मोबाइल पर भेजे गए फोटो सहित मैसेज का भी जवाब देना मुनासिब नहीं समझे। अब भला सरकार के भरोसे को ये अधिकारी तोड़ नहीं रहे तो और क्या कर रहे हैं?