Sunday, September 8, 2024
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जंगलराज : क्रेक बीम पर खड़े कमजोर पिलर को रस्सी और पेड़ का सहारा, 1 करोड़ से बन रहा पत्ता गोदाम की गुणवत्ताहीनता के चर्चे … देखें वीडियो

0 अपनी कारगुजारियों से लगातार सुर्खियों में बना है कटघोरा वनमंडल
कोरबा (खटपट न्यूज)। कोरबा जिले का कटघोरा वन मंडल इन दिनों अपनी चर्चित कारगुजारियों के कारण लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। स्टॉप डेम निर्माण में मजदूरी करने के बाद मजदूरों को उनकी राशि 1 साल बाद भी भुगतान करने में डीएफओ द्वारा रुचि नहीं दिखाई जा रही तो दूसरी तरफ वन मंडल के अधिकारी व कर्मी कोरोना लॉकडाउन का उल्लंघन कर प्रशिक्षण के बहाने जंगल में शराब और कवाब की पार्टी करते हैं। जंगलराज में हरे-भरे बांस प्रतिबंध के बावजूद कटवा दिए जाते हैं, जिसे मामूली त्रुटि करार दिया जाता है। मामलों में लीपा-पोती करना जैसे यहां के अधिकारियों व कर्मियों के बाएं हाथ का खेल हो गया है। अब एक बड़ी गड़बड़ी गुणवत्ताहीन निर्माण के सिलसिले में सामने आई है जहां जिम्मेदार अधिकारियों की नाक के नीचे रस्सी के सहारे पिलर को थामकर पत्ता गोदाम का निर्माण कराया जा रहा है।

जो कहीं संभव न हुआ हो, वह कटघोरा वनमंडल में संभव हो तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी और अपनी तरह के अनूठे निर्माण कार्य को कटघोरा वनमंडल में अंजाम दिया जा रहा है। यहां लगभग 1 करोड़ की लागत वाला पत्ता गोदाम निर्माण कराया जा रहा है जिसके बीम और कॉलम जगह-जगह से क्रेक हो चुके हैं एवं अलाइंमेंट भी सही नहीं बताया जा रहा है। कॉलम एक सीध में होने की बजाय तिरछे होने के साथ ही तेज हवा चलने पर कभी भी धराशायी होने के हालात में है।

https://youtu.be/v8IZYQl1e9s

पत्ता गोदाम के लिए निर्मित हो रहे इस भवन का प्रारंभिक निर्माण ही सूखे पत्ते की तरह हिलने-डुलने वाला होगा तो पूरी इमारत की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। तस्वीरों और वीडियो से स्पष्ट है कि क्रेक बीम और कॉलम के सहारे खड़ा किया गया गुणवत्ताहीन पिलर ढह ना जाए और गुणवत्ता की पोल न खुल जाए, इससे बचने के लिए पिलर को रस्सी के सहारे पेड़ से बांधकर थामा गया है। यह अपनेआप में निर्माण शैली का एक अद्भुत नजारा और नई पद्धति भी कही जा सकती है जो जिम्मेदार एवं निगरानी करने वाले अधिकारी की देखरेख में हो रहा है।

शासन जहां एक ओर अपने अधिकारी व कर्मचारियों पर आंख मूंदकर भरोसा करते हुए उनके कार्य प्रस्तावों पर मुहर लगा लाखों-करोड़ों रुपए स्वीकृत करती है। कहीं न कहीं यह राशि आम जनता के जेब से ही निकलकर सरकारी खजाने में जमा होकर वापस योजनाओं के क्रियान्वयन व निर्माण कार्यों में खर्च करने के लिए स्वीकृत की जाती है। डीएफओ की जानकारी में यह गुणवत्ताहीन निर्माण न हो, यह भी संभव नहीं और यदि उनकी जानकारी में किसी कारणों से न आया हो तो देखने वाली बात यह होगी कि खबरों के माध्यम से संज्ञान लेकर वे क्या कदम उठाती हैं?

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