महान फ़ुटबाल खिलाड़ी पेले नहीं रहे। वो 82 साल के थे और हाल के दिनों में किडनी और प्रोस्टेट की बीमारियों जूझ रहे थे. उनके निधन से खेल जगत और फुटबॉल प्रेमियों में शोक की लहर विश्व भर में फैल गई.
21 साल के कैरियर में उनके नाम 1,281 गोल करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड है. वो एकमात्र फ़ुटबॉल खिलाड़ी हैं जिन्होंने तीन बार वर्ल्ड कप वर्ष 1958, 1962 और 1970 में जीता था। उन्हें वर्ष 2000 में फ़ीफ़ा के प्लेयर ऑफ द सेंचुरी का तमगा दिया गया. पिछले साल सितम्बर में उनके आंत की सर्जरी हुई थी और एक ट्यूमर निकाला गया था. उनका इलाज़ साओ पाओलो के आइंस्टीन अस्पताल में चल रहा था जहाँ वे दुनिया को अलविदा कह गए.
0 एक नजर महान फुटबॉलर के जीवन पर
ब्राजील के महान फुटबॉलर पेले पिछले कुछ समय से जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे। पेले कैंसर के मरीज थे और कुछ महीनों से उनकी तबीयत लगातार बिगड़ रही थी। फुटबॉलर पेले को दुनिया भर में ब्लैक डायमंड और ब्लैक पर्ल के नाम से पहचान मिली थी। उनका जीवन किसी प्रेरणा से कमतर नहीं।
फुटबॉल को कई दशकों पहले अलविदा कहने वाले ब्राज़ील के पेले का गुणगान आज भी फुटबॉल की दुनिया में सबसे अधिक सुनने को मिलता हैं। इसका मतलब पेले को आम खिलाड़ी नहीं रहे, बल्कि वो फुटबॉल के शहंशाह कहलाए गए। ब्लैक डायमंड, ब्लैक पर्ल, किंग ऑफ़ फुटबॉल और फुटबॉल का जादूगर ना जाने कितने नाम थे जो पेले के लिए उनके फैंस आज भी भी दिल में बसाये हुए हैं। पेले का जन्म 23 अक्टूबर 1940 को ब्राजील के ट्रेस कोरकोएस शहर में हुआ था। पेले के पिता का नाम डॉनडीनहो था जबकि उनकी माता का नाम डोना सेलेस्टी अरांटेस था। पेले का पूरा नाम एडसन अरांटीस डो नैसीमेंटो है। लेकिन इन्हे हमेशा पेले के नाम से ही फुटबॉल जगत में पहचान मिली।
0 गरीबी में बीता बचपन:
बता दें पेले के पिता भी फुटबाल के खिलाड़ी थे। इसलिए बचपन से ही पेले की भी फुटबॉल के प्रति काफी दीवानगी थी लेकिन वो इसके लिए ट्रेनिंग नहीं ले पाए। इसके पीछे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति थी। पेले का बचपन गरीबी में बीता था। उनके परिवार की आमदनी से घर खर्चा चलना भी बेहद मुश्किल था। ऐसे में पेले की पढ़ाई और फुटबॉल की कोचिंग तो बहुत दूर की बात थी,लेकिन पेले को एक फुटबॉल खिलाड़ी बनकर अपने पिता का सपना पूरा करना था। ऐसे में तमाम मुश्किलों के बावजूद पेले ने फुटबॉल जगत में अपनी एक विशेष छाप छोड़ी।
0 चाय बनाने वाला बना फुटबॉल किंग
बता दें जब उनको बचपन में पैसों के चलते उनके माता-पिता फुटबाल की कोचिंग में नहीं भेज पाए तो उन्होंने खुद मेहनत करनी शुरू कर दी। एक्स्ट्रा पैसों के लिए पेले ने चाय की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने जुराब में रुई डालकर फुटबॉल की प्रैक्टिस की। परिवार की गरीबी को उन्होंने अपने करियर के आगे हावी नहीं होने दिया और बिना घर वालों पर बोझ बनकर खुद अपनी मेहनत और लगन से फुटबॉल के किंग कहलाए। पेले ने दुनियां भर के लोगों को अपनी खेल प्रतिभा प्रभावित किया जिससे लोगों का फ़ुटबॉल की ओर झुकाव बढ़ा। आज के समय में फुटबॉल के कई बेहतरीन खिलाड़ी भी उन्हें अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं। (साभार)