Monday, January 13, 2025
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Homeदेश-विदेशराज्यपाल ने उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से की चर्चा, ये कहा…

राज्यपाल ने उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से की चर्चा, ये कहा…

भोपाल। राज्यपाल लालजी टंडन ने निर्देशित किया है कि राजभवन भोपाल और पंचमढ़ी में आकर्षक और आत्म निर्भर उद्यानों का पर्यटन केन्द्र के रूप में विकास किया जाए। राजभवन के आगंतुकों को मध्यप्रदेश की जैव विविधता, आधुनिक जैविक पद्धति से बागवानी और फल एवं पुष्प उद्यान की लाभकारी और आत्मनिर्भर खेती की जानकारी और प्रेरणा प्राप्त हो। उन्होंने कहा है कि राजभवन में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाए। राजभवन में उपलब्ध कचरे, गोबर, गो-मूत्र इत्यादि जैविक और प्राकृतिक तत्वों का उपयोग कर कृषि एवं उद्यानिकी फसल के लिये खाद और कीटनाशकों का निर्माण किया जाये। श्री टंडन विश्व पर्यावरण दिवस अवसर पर आयोजित संरक्षित खेती के लिए निर्मित पॉली हाऊस शुभारम्भ के बाद उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से आज चर्चा कर रहे थे। इस अवसर पर प्रमुख सचिव उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव, राज्यपाल के सचिव श्री मनोहर दुबे, आयुक्त सह संचालक उद्यानिकी श्री पुष्कर सिंह एवं अन्य अधिकारीगण उपस्थित थे। श्री टंडन ने कहा कि राजभवन के फल और पुष्प उद्यान आदर्श उद्यान के रुप में विकसित किये जाएं जो सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बने। उद्ययान निर्माण और संचालन का मूल आधार आत्म निर्भरता हो। उन्होंने कहा सभी कार्य प्रदर्शनात्मक तरीके से किये जायें ताकि उन्हें देखकर दूसरों को जानकारी और कार्य करने की प्रेरणा मिलें। आधुनिक, जैविक, उद्यानिकी पद्धतियों का व्यवहारिक रूप देखने को मिले। उद्यानिकी फसलों को लाभकारी बनाने के लिए उपयुक्त फल और पुष्प की किस्मों को देख सकें। आत्म निर्भरता के लिए जैविक खाद और कीटनाशकों के उत्पादन के साथ ही भारतीय केचुओं के उत्पादन के प्रयास भी किये जाएं। वर्तमान वर्मी कम्पोस्ट में उपयोग किए जाने वाले केंचुए केवल गोबर एवं अन्य को खाद में परिवर्तित कर देते हैं। जबकि भारतीय केचुएं कृषि भूमि की उत्पादकता को बढ़ाने में सहयोग करते हैं। देशी केचुएं भूमि में ऊपर से काफी नीचे आने-जाने की प्रक्रिया में कृषि उपयोग के लिए मिट्टी को मुलायम कर देते हैं। इसी तरह सिंचित क्षेत्र और असिंचित क्षेत्रों में जीवामृत और घन जीवामृत उर्वरकों का उपयोग भूमि की उत्पादकता में काफी बढ़ोतरी कर देता है। निर्माण की प्रक्रिया अत्यन्त सरल है। इसे गोबर, गोमूत्र के साथ थोड़ा सा बेसन और गुड़ मिलाकर एक ड्रम में तैयार किया जा सकता है। सिंचित क्षेत्र में पानी की नालियों से और असिंचित क्षेत्र में सूखा छिड़काव कर उपयोग में लाया जा सकता है।

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