0 प्रत्यावर्तन का आदेश पारित करने में गंभीर त्रुटि पर उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर पूर्व पारित आदेश को निरस्त किया
0 प्रकरण को पुन: रिमांड कर प्राचीन अभिलेख 1954-1955 जमाबन्दी के आधार पर 6 माह में निराकरण करने का आदेश
सीपत/बिलासपुर/रायपुर, (खटपट न्यूज)। अनुविभागीय अधिकारी द्वारा स्व प्रेरणा से धारा 170 ख के तहत प्रारंभ प्रकरण में पारित किए गए प्रत्यावर्तन आदेश के विरूद्ध दायर याचिका पर उच्च न्यायालय ने प्राचीन राजस्व अभिलेख के आधार पर ही प्रत्यावर्तन की कार्यवाही सुनिश्चित करने संबंधी आदेश जारी किया है। ग्राम राक सीपत निवासी याचिकाकर्ता ईश्वर प्रसाद के पिता सोनाऊ राम द्वारा सन् 1984 एवं 1993 में भूमि उसके मूल भूमिस्वामी से विधीवत पंजीकृत बैनामा के माध्यम से क्रय की गयी थी तथा कब्जा प्राप्त कर राजस्व अभिलेखों में अपना नाम नामांतारण कराया गया था। सोनाऊ राम द्वारा क्रय की गयी भूमि खसरा नांबर 1799/1 एवं 1740/1, भूमि पर तत्कालीन अनुविभगीय अधिकारी द्वारा स्व प्रेरणा से सन 1998 में धारा 170 ख के तहत प्रकरण प्रारम्भ किया गया। हल्का पटवारी के प्रतिवेदन के आधार पर अनुविभागीय अधिकारी द्वारा दिनांक 4 मार्च 1998 को प्रत्यावर्तन का आदेश पारित कर दिया गया। इस आदेश के विरूद्ध कलेक्टर को अपील एवं कमिश्नर के समक्ष पुनर्विलोकन भी खारीज हो गयी। इसके विरुद्ध ईश्वर प्रसाद द्वारा अधिवक्ता सुशोभित सिंह के माध्यम से उच्च न्यायालय बिलासपुर में याचिका प्रस्तुत की गई। याचिका के समर्थन में वर्ष 1954-1955 की जमाबन्दी का प्राचीन राजस्व अभिलेख प्रस्तुत किया गया। तर्क में उच्च न्यायालय में बताया गया कि 1954-1955 जमाबन्दी राजस्व अभिलेख से निरंतर याचिकाकर्ता की भूमि कभी भी, अनुविभागीय अधिकारी द्वारा 4 मार्च 1998 को आदेश पारित किए जाने तक कभी भी आदिवासी के नाम पर दर्ज नहीं थी बल्कि यह भूमि 1954-1955 से निरंतर गैर आदिवासी के नाम पर दर्ज चली आ रही थी। राजस्व अधिकारियों द्वारा प्रत्यावर्तन का आदेश पारित करने में गंभीर त्रुटि की गयी है। उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर राजस्व अधिकारियों द्वारा पारित आदेश को निरस्त कर प्रकरण को पुन: अनुविभगीय अधिकारी को रिमांड कर मामले को प्राचीन अभिलेख 1954-1955 जमाबन्दी के आधार पर 6 माह में निराकरण करने का आदेश दिया है।