
कोरबा(खटपट न्यूज़)। स्वतंत्र भारत की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ ऊर्जाधानी, राजधानी सहित देश भर में हर्षोल्लास पूर्वक धूमधाम से कोरोना प्रोटोकॉल के साए में मनाई गई। देशभक्ति के जज्बे से ओत-प्रोत लोग नजर आए। तरह-तरह से अपने देश प्रेम का इजहार करते हुए लोग दिखे। अधिकारी वर्ग और नेताओं ने भी आज के दिन देश भक्ति से खुद को परिपूर्ण बताया। आजादी का जश्न देश की अस्मिता, एकता व अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए संदेश देने का त्योहार है। वर्षो की गुलामी को हजारों हजार शहीदों के बलिदान की कीमत चुका कर तोड़ा जा सका है। देश की आन-बान और शान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा, जिसकी शान में अनेकों कसीदे गढ़े जाते हैं, सैकड़ों गीत लिखे गए हैं, यह मात्र एक झंडा नहीं बल्कि भारत के शौर्य, पराक्रम, शांति, सादगी व समृद्धि का परिचायक भी है।
यह बड़ा ही दुर्भाग्य जनक है कि स्थानीय सत्ता में बैठे जन प्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अधिकारी उनके द्वारा अपने-अपने हिसाब से और कभी-कभी मांग के अनुरूप महापुरुषों/ शहीद जवानों/देश के अग्रणी किसानों और जवानों की भूमिका को रेखांकित करते हुए अनेक स्थानों पर उनकी प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। खेद जनक बात तब होती है जब इन्हीं गौरव महसूस करने वाली प्रतिमाओं/मूर्तियों और स्मारक स्थलों को हम बदहाल हालत में देखते हैं। कलेक्ट्रेट से चंद कदम की दूरी पर कोसाबाड़ी शास्त्री चौक के किनारे पर 4 वर्ष पूर्व सौंदर्यीकरण कराया गया। नगर निगम द्वारा यह कार्य संपन्न हुआ किंतु इसके बाद इसे भूल गए। यहां लहराते हुए दिखाए तिरंगे के साथ उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए लड़ते जवानों को रेखांकित किया गया है लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया। खेद जनक है कि इन जवानों की वर्दियों के रंग, किसानों के पगड़ी के रंग फीके पड़ गए, तिरंगा झंडा का रंग उखड़ कर बदरंग हो गया है पर इनमें रंग भरने की जहमत कोई सरकारी अधिकारी और जनप्रतिनिधि नहीं उठाए। इन 4 वर्षों में स्वतंत्रता दिवस भी आए, गणतंत्र दिवस भी मनाए गए, पर किसी मौके पर तो इन बदरंग होती तस्वीरों में रंग भरने का काम किया गया होता..!
बता दें कि इस चौक से चंद कदम की दूरी पर जिला पंचायत, कलेक्ट्रेट, नगर पालिक निगम, जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय मौजूद है। इन दफ्तरों का हाल ही के वर्षों में जो 4 वर्ष के भीतर शामिल है लाखों रुपए खर्च कर रिनोवेशन कराया गया। कलेक्टर बदलने के साथ ही अपने हिसाब से केबिन को बदलने में खर्च करते हैं नगर निगम में लाखों रुपए सभा कक्ष से लेकर अन्य पुनःनिर्माण/रेनोवेशन में फूंक दिए गए। आखिर इनके लिए मद कहां से आते हैं? सरकारी धन का उपयोग होता है तो क्या जगह-जगह पर स्थापित महापुरुषों की प्रतिमाओं, उनके नाम पर निगम द्वारा स्थापित कराए गए गार्डन पर खर्च क्यों नहीं किए जाते। यदि किसी के उपकार से दफ्तरों का रिनोवेशन होता है तो भला वही उपकार इन महापुरुषों और देश की अस्मिता को दर्शाने वाले नक्काश के ऊपर क्यों नहीं कराया जाता।
सवाल तो बहुत हैं पर जवाब सिर्फ अधिकारियों और नेताओं के पास है। अब तो वार्डों में भी जनप्रतिनिधि हैं, निर्वाचित पार्षद हैं,एल्डरमैन हैं, एमआईसी सदस्य हैं। प्रशासनिक अधिकारी हैं जिनका वास्ता उक्त मार्गो से अक्सर पड़ता है बावजूद इसके बदरंग होती तस्वीरों में रंग डाल कर जान फूंकने का काम नहीं हो रहा है। यह कैसा राष्ट्रप्रेम का जश्न है जब हम एक ओर 1 दिन के लिए तिरंगा लहरा कर अपना सीना चौड़ा करते हैं तो वहीं स्थाई रूप से उकेरे इन चित्रों में रंग भरने के लिए फुर्सत ही नहीं या उन्हें सवारने के लिए जहमत नहीं उठाना चाहते। इसी तरह बुधवारी बस्ती का गांधी पुतला परिसर भी उपेक्षित है। अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ से प्रथम महिला सांसद मिनीमाता, गुरू घासीदास चौक के चबूतरे का जीर्णोद्धार की भी मांग उठ चुकी है।

00 सत्या पाल 00 (7999281136