कोरबा, (खटपट न्यूज़) । धर्मांतरित जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाकर उन्हें दिया जाने वाला आरक्षण समाप्त करने की मांग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की गई है। इस संबंध में जनजाति सुरक्षा मंच कोरबा इकाई द्वारा कलेक्टर के माध्यम से प्रधानमंत्री को जिला संयोजक लक्ष्मीकांत जगत ने ज्ञापन प्रेषित किया है।
लक्ष्मीकांत जगत ने कहा है कि धर्मांतरित जनजातियों को आरक्षण सुविधा के विरूद्ध तत्कालीन बिहार के जनजाति नेता लोकसभा सदस्य व केन्द्रीय मंत्री रहे स्व. कार्तिक उरांव द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को वर्ष 1970 में आवेदन दिया गया था। इस बात को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन आवेदन को न तो लोकसभा के पटल पर रखा गया और न ही खारिज किया गया। 235 लोकसभा सदस्यों के हस्ताक्षरयुक्त आवेदन को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया जो स्व. कार्तिकराम के जन्मदिन पर सरकार को पुन: इसकी याद दिलाई गई है।
संशोधन हेतु आवेदन में प्रस्तावित किया गया था कि – (2 अ) कंडिका 2 में निहित किसी बात के होते हुये भी कोई भी व्यक्ति जिसने जनजाति आदिमत तथा विश्वासों का परित्याग कर दिया हो और ईसाई या ईस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया हो वह अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा। (पृष्ठ 29, पंक्ति 38 की अनुसूची कंडिका (2अ))।
इस प्रकार का एक संशोधन 1950 में अनुसूचित जातियों के संबंध में किया गया वह इस प्रकार था : –
भारतीय अधिनियम 1935 के अंतर्गत भारतीय इसाई की परिभाषा में यह कहा गया है कि भारतीय ईसाई वह होगा जो कोई भी ईसाई पंथ को मानता हो और यूरोपीय या अंगलो इंडियनन हो। इसके अनुसार अनुसूचित जनजाति से जब एक व्यक्ति ईसाई धर्म में धर्मांतरित हो जाता है, स्वाभाविक रूप से वह व्यक्ति भारतीय ईसाई की श्रेणी में आएगा। अत: उसको किसी भी प्रकार का आरक्षण की सुविधाएं देना असंवैधानिक माना जाएगा।
वास्तविक जनजातियों के साथ हो रहे इस अन्याय के खिलाफ जनजाति सुरक्षा मंच वर्षों से लड़ते आया है। अभी तक बहुत से सुविधाओं का धर्मांतरित लोगों द्वारा उपभोग किया जाता रहा है जो आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से वास्तविक जनजातियों से तुलना में काफी कुछ अच्छे स्थिति में है। जनजाति सुरक्षा मंच यह मांग करता है कि काफी विलंब हो चुकने के बावजूद ऊपर बताये गये दिशा में संशोधन करना अत्यंत आवश्यक है।
इस संबंध में जनमत संग्रह करने हेतु जनजाति सुरक्षा मंच ने 2015 में एक हस्ताक्षर चलाया था जिसमें देशभर के 18 वर्ष के ऊपर आयु वाले 27.67 लाख जनजाति लोगों ने हस्ताक्षर किया। स्व. जगदेव राम उरांव, स्व. दिलीप सिंह भूरिया एवं तत्कालीन राज्यसभा सदस्य एवं वर्तमान छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्रीमती अनुसुईया उइके के नेतृत्व में देशभर के जनजाति नेताओं के एक प्रतिनिधि मंडल ने तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रभादेवी सिंह पाटिल को मिलकर यह जनमत संग्रह का आवेदन सौंपा था। पर हमें निराश करते हुए 27.67 लाख जनजाति लोगों की मनोकामना न्यायोचित मांग को संज्ञान में लेने या आवश्यक कदम उठाने का कोई प्रयास दिखाई नहीं दिया। हाल ही में लोकसभा के एक सदस्य के द्वारा इस विषय को उठाने का सराहनीय कदम स्वागत करने योग्य है। देश की आजादी के 23वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी धर्मांतरित जनजातियों के लोग आरक्षण की सुविधा का भरपूर अधिकतम अनुचित लाभ उठा रहे हैं।
जनजाति सुरक्षा मंच ने भारत के राष्ट्रपति से निवेदन किया है कि पांच दशकों से लंबित इस समस्या के समाधान हेतु प्राथमिकता के आधार पर अनुसूचित जनजातियों के साथ हो रहे इस अन्याय को हमेशा के लिए समाप्त कर धर्मांतरित लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने हेतु शीघ्र ही आवश्यक संशोधन करें ताकि वास्तविक जनजाति के जीवन में 73 वर्ष से छाए हुए अंधेरे को हटाते हुए आशा की नई किरणें उनके जीवन में प्रवाहित हो सकें।