कोरबा। देवउठनी एकादशी गुरूवार को ऊर्जाधानी में परंपरागत मनाया गया। हिन्दू धर्मावलंबियों ने घरों के आंगन में मां तुलसी के चौरे को सजाकर गन्ने का मंडप बनाया और शालिग्राम को विराजित कर विवाह की प्रतिकात्मक परंपरा को निभाया। शुभ कार्यों पर लगा विराम आज से हट गया है और अब शुभ मुहुर्त प्रारंभ होने के साथ ही शहनाईयों की गूंज भी सुनाई देने लगेगी।
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार चार माह पहले आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि (देवशयनी एकादशी) पर भगवान विष्णु क्षीरसागर विश्राम करने चले जाते हंै। उस दिन से सभी तरह के शुभ मुहुर्तों पर रोक लगी थी। देव प्रबोधिनी एकादशी पर देवगणों के जागने की परंपरा निभाई गई। इस दिन से विवाह समेत सभी शुभ कार्यों की शुरूआत होगी। एकादशी तिथि पर भगवान शालिग्राम एवं तुलसी माता का घर-घर में विवाह किया गया। इसके बाद ही विवाह योग्य युवक-युवतियों के विवाह की शहनाई बजने लगेंगे। छत्तीसगढ़ में देवउठनी को जेठौनी के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिस घर में तुलसी जी की पूजा होती है, उस घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं रहती। देवउठनी एकादशी की खरीदारी के लिए बाजार में काफी चहल-पहल और भीड़-भाड़ रही। एकादशी में गन्ना पूजा का विशेष महत्व रहता है जिसके लिए गन्ने की कीमत भी काफी तेज रही। बाजार में गन्ना 100 रुपए जोड़ा से लेकर 100 रुपए में 5-6 नग तक बेचा गया। पूजा में मौसमी फलों का भी विशेष महत्व रहता है जिसकी खरीदारी लोगों ने की।