Thursday, February 6, 2025
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अपडेट:इच्छामृत्यु मामले में SECL ने दी यह जानकारी…

0 3 एकड़ जमीन देने के बाद बदहाल हुआ बंशीदास का परिवार

कोरबा(खटपट न्यूज़)। एसईसीएल की गेवरा परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई ग्राम कोसमन्दा की जमीनों में शामिल शक्तिदास महंत की 3 एकड़ भूमि के एवज में नौकरी, मुआवजा बसाहट के लिए वर्षों से संघर्षरत पुत्र बंशीदास बदहाली के दौर से गुजर रहा है। उसने एसईसीएल के अधिकारियों पर प्रताड़ना और असहयोगात्मक रवैया तथा प्रशासन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए जिला प्रशासन से अपने बच्चों सहित इच्छा मृत्यु की अनुमति की गुहार लगाई है। 80% दिव्यांग हो चुका बंशीदास अपनी एक बीमार बेटी सहित 5 बच्चों के पालन पोषण में अक्षम है। यह मामला खटपट न्यूज़ द्वारा प्रमुखता से प्रकाशित किए जाने के बाद एसईसीएल प्रबंधन की ओर से उनके जनसंपर्क अधिकारी सनीष कुमार ने प्रबंधन का पक्ष रखा है।
0 नहीं मिला था स्वामित्व,सरकारी थी जमीन
इस मामले में एसईसीएल प्रबंधन की ओर से जनसंपर्क अधिकारी सनिश कुमार ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया है कि उक्त भूमि जिस पर बंशीदास के द्वारा दावा किया गया है, वह उसके पिता शक्तिदास महंत के स्वामित्व में अधिग्रहण के दौरान दर्ज नहीं थी। भूमि अधिग्रहण के लगभग 2-3 वर्षों पश्चात शासकीय पट्टेदार से भूस्वामी घोषित किया गया। अधिग्रहण के समय वर्ष 1983-84 में खसरा नं. 438/1 क रकबा 77.36 एकड़ जंगल मद की भूमि मध्यप्रदेश शासन के स्वामित्व की थी। उक्त भूमि और दावा के संबंध में उच्च न्यायालय में याचिका विचाराधीन है, जिसके निर्णय की प्रतीक्षा है। (विस्तृत जानकारी प्रबंधन के पत्र में देखें)
0 जानकारी के अभाव में हुए विधि विरुद्ध कार्य,पर अब संभव नहीं
प्रबंधन द्वारा बताया गया कि बंशीदास ने पूर्व में कई शासकीय पट्टेदारों को मुआवजा व रोजगार देने का उल्लेख आवेदन में किया है जिसे दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर प्रबंधन अस्वीकार नहीं कर सकता लेकिन इस प्रकार की कार्यवाही पूर्व में वर्ष 1990 के दशक में संभवत: जानकारी के अभाव में विधि विरुद्ध कार्यवाही की गई थी, जिसका उदाहरण देकर फिर से विधि विरुद्ध कार्यवाही किया जाना विधि संगत प्रतीत नहीं होता है। प्रबंधन की ओर से कहा गया है कि शिकायतकर्ता हठधर्मिता को अपनाते हुए इच्छामृत्यु का हवाला देकर नियम विरुद्ध कार्य करने हेतु विवश करने का प्रयास कर रहा है जिसे स्वीकार किया जाना उचित और संभव नहीं है।
0 अब सवाल यह भी…
इस मामले में प्रबंधन ने बंशीदास पर अनर्गल दबाव बनाने की बात कही है। दूसरी ओर सवाल अब भी कायम है कि जब एसईसीएल प्रबंधन के द्वारा 1983-84 में जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया और उस वक्त वह शासन की भूमि थी तो दो-तीन वर्ष बाद 1986 में शासन ने उक्त भूमि के लिए शक्तिदास को अधिकार पट्टा क्यों और कैसे प्रदान किया? दूसरा सवाल यह भी है कि जब उक्त भूमि के टुकड़ों पर काबिज अन्य लोगों की जमीन 1983-84 में ही अधिग्रहण किये जाने के बाद (जब भूमि को शासकीय बताया गया है) भी उन लोगों को नौकरी दी गई तो बंशीदास को लाभ क्यों नहीं दिया गया? प्रबंधन ने स्वीकार किया है कि 1990 में जानकारी के अभाव में विधि विरुद्ध कार्यवाही हुई है, तो क्या इसकी जानकारी होने के बाद विधि विरुद्ध कार्यवाही को निरस्त किया गया? क्या शासकीय भूमि पर काबिज लोगों को अधिग्रहण के एवज में दी गई नौकरी बर्खास्त की गई? क्या उन्हें दिया गया मुआवजा शासकीय खाता में जमा कराया गया है? यदि नहीं तो क्यों..?

बंशीदास का आग्रह पत्र
एसईसीएल का जवाब

एसीएईएल का जवाब

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