कोरबा(खटपट न्यूज़)। जिले में सामाजिक बुराई जुआ की धरपकड़ और रोकथाम के लिए भले ही जिला पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर थाना व चौकियों में कार्रवाई की जा रही है परंतु कुछ ऐसे मामले भी अनायास सामने आ जाते हैं जिससे जुआरियों के साथ दोस्ताना व्यवहार उजागर हो ही जाता है।
डीएसपी (मुख्यालय) रामगोपाल करियारे के पर्यवेक्षण क्षेत्र बाल्को थाना के अंतर्गत आने वाली राजगामार चौकी क्षेत्र में चौकी स्टाफ द्वारा 20 नवंबर को जुआ पकड़ा गया। रजगामार व केरवा के मध्य जंगल में काट पत्ती जुआ खेलते 12 लोग दबोचे गए। इनसे 52 पत्ती ताश, प्लास्टिक का एक बोरा और 13हजार180 रुपये नगद जप्त किया गया। पुलिस की यह कार्रवाई नि:संदेह सराहनीय है लेकिन आरोपियों को उजागर करने में कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई।
पुलिस कार्रवाई में जुआरियों की तस्वीर उजागर/सार्वजनिक होने के साथ ही रजगामार क्षेत्र में चर्चा है कि पुलिस ने 12 लोगों को पकड़ा पर चेहरे सिर्फ 10 लोगों के ही तो सामने लाए गए, क्यों? गायब चेहरों में से एक फड़ का संचालक बताया जा रहा है जिसका नाम लक्ष्मी गुप्ता है। चर्चा है कि उसने अपने पिता का नाम भी गलत दर्ज कराया है। पुलिस ने जिन 12 लोगों को पकड़ा है उनमें भागवत प्रसाद साहू, रमेश कुमार बरेठ, अजय अग्रवाल, करीम उल्ला, माधोदास मानिकपुरी, कन्हैया लाल यादव, उमेश कुमार कुर्रे, लक्ष्मी प्रसाद सारथी, दादू लाल साहू शिवनारायण दिव्य, उमेशंकर भार्गव व लक्ष्मी गुप्ता शामिल हैं। मीडिया के लिए जारी की गई तस्वीरों में एक जुआरी आरक्षक के पीछे खड़ा है जो फड़ का संचालक बताया जा रहा है जबकि एक अन्य शख्स तस्वीर से गायब है जो फोटो खिंचवाते वक्त वहाँ से हटा लिया गया। ऐसा भी नहीं कि उस एक शख्स के लिए जगह ना रही हो या कैमरा छोटा पड़ गया। आखिर इस चेहरे को तस्वीर से गायब क्यों किया गया या वह पुलिस की नजर से ओझल होकर कैसे सामने आने से बचा रह गया? जुआरियों के साथ इस दोस्ताने की चर्चा रजगामार क्षेत्र में काफी गर्म है। हालांकि जिम्मेदार अधिकारी इसे चूक बता रहे हैं जबकि कोई चूक नहीं बल्कि सीधे-सीधे 2 जुआरियों को सामने नहीं लाने की जुगत है। आखिर दूसरे जुआरियों ने पुलिस का क्या बिगाड़ा था या इन दोनों गायब किये गए चेहरों ने क्या खास दे दिया..? अपराधियों से आखिर यह कैसा लगाव और भेदभाव क्यों?