0 अपनी जेब भरने से फुर्सत नहीं, मजदूरों का पारिश्रमिक देने में पसीने छूट रहे
कोरबा(खटपट न्यूज़)। शासन किसी योजना अथवा निर्माण के संबंध में उसके प्राक्कलन के अनुसार राशि विभागों को जारी करती है जिसमें काम करने वालों का मेहनताना भी शामिल होता है, परंतु यह विडंबना है कि मजदूरों को उनका मेहनताना देने में अधिकारियों और ठेकेदारों का पसीना छूट जाता है। दूसरी तरफ निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार कर, गुणवत्ता हीन सामग्रियों का उपयोग कर लाखों रुपए यूं ही बचा लिए जाते हैं। आधे-अधूरे कार्यों का पूरा भुगतान हो जाता है, जो काम हुए ही नहीं उनकी भी राशि निकल जाती है, फर्जी मजदूरों का भुगतान करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं होती, सरकारी राशि निजी खातों में यूं ही डाल दी जाती है लेकिन हाथ नहीं कांपते न कार्यवाही का भय सताता है। ऊपर से फाइल आगे बढ़ाने, कार्य का भुगतान करने के एवज में कमीशनखोरी होती है वह अलग। ऐसे ही अधिकारियों और कर्मचारियों तथा चंद ठेकेदारों के भ्रष्ट कारनामों का खामियाजा मेहनतकश मजदूर भुगत रहे हैं। आदिवासी और जंगल क्षेत्र में रहने वाले मजदूरों का हाल और भी बदहाल है जो अपने शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने में संकोच करते हैं/डरते हैं।
ऐसा ही एक मामला सामने आया है और इसकी शिकायत की गई है जिसमें 1 साल पहले कराए गए कार्य की मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया और वह डब्ल्यूबीएम सड़क भी बह गई। यह कार्य कटघोरा वन मंडल के चैतमा वन क्षेत्र अंतर्गत सपलवा से छिंदपहरी के मध्य 3 किलोमीटर डब्ल्यूबीएम सड़क निर्माण कार्य का है। इस कार्य में लगे मजदूरों के द्वारा इस वर्ष भी रामाकछार से बगदरा छिंदपानी के मध्य डब्ल्यूबीएम सड़क में मजदूरी की जा रही है। पेट की आग बुझाने के लिए काम करना जरूरी है लेकिन इनका पसीना सूख जाने के बाद भी मेहनताना नहीं मिलना शर्मनाक है। मजदूरी भी शासन से निर्धारित दर के अनुसार ना देकर काफी कम दी जा रही है और उस पर भी रकम बकाया रखी जा रही है तो समझा जा सकता है कि वन अधिकारियों की नाक के नीचे किस प्रकार से मजदूरों का शोषण हो रहा है।
0 डब्ल्यूबीएम सड़क में फंडा
जंगल के भीतर निर्माण कराए जाने वाले डब्ल्यूबीएम सड़क के कार्य का फंडा ही समझ से परे है। इस सड़क के निर्माण के लिए जंगल से ही गिट्टी, पत्थर, मिट्टी, मुरूम का उपयोग अधिकांशत: किया जाता है लेकिन इन सामग्रियों के एवज में भारी-भरकम बिल लगाकर भुगतान प्राप्त किया जाता है? विभाग इनके एवज में लंबी-चौड़ी राशि का भुगतान क्यों करता है जिसका क्रय और परिवहन ही न हुआ हो। यदि डब्ल्यूबीएम सड़क का निर्माण जंगल के ही सामग्रियों से होना है तो ऐसे सामग्रियों का भुगतान बिल्कुल भी ना किया जाए। कम और अधिक दूरी व लागत की सड़क के लिए नियम अलग-अलग हैं जिसकी आड़ में खेल हो रहा है।
0 आख़िर कौन है जिम्मेदार
इन हालातों के पीछे एक तरह से वन विभाग के अधिकारी भी जिम्मेदार हैं। अगर ठेकेदार की बात पर यकीन करें तो 60 और 40% के अनुपात में काम हो रहा है। मतलब कि ठेका लेने से लेकर बिल पास कराने तक 60% विभाग में खर्च करना पड़ता है और 40% राशि काम करने के लिए बच जाती है। अब ऐसे में ठेकेदार कितना काम करे, अपना पैसा निकालें या फिर मजदूरों को भुगतान करे। अगर ठेकेदार की बात में सच्चाई है तो वन विभाग का हाल और तौर- तरीका सहज ही समझा जा सकता है। वैसे भी पूर्व डीएफओ श्रीमती शमा फारूकी के कार्यकाल में तो ऐसे-ऐसे कारनामे हुए हैं जिनमें बिलासपुर के एक ठेकेदार/सप्लायर ने कटघोरा वन मंडल के जटगा पसान जैसे दूरस्थ जंगलों में होने वाले निर्माण कार्यों के लिए रेत, गिट्टी, छड़, सीमेंट आदि पहुंचाकर प्रचलित बाजार दर से भी कम दर पर देना प्रदर्शित किया है। उस सप्लाई के एवज में लाखों रुपए भुगतान भी हो गया है लेकिन धरातल में सामान मौके पर पहुंचे ही नहीं।