0 रजिस्ट्री के लिए भटक रहे जरूरतमंद लोग
कोरबा(खटपट न्यूज़)। जिले के तहसील न्यायालय स्तर पर डायवर्टेड भूमि विक्रय की अनुमति संबंधी आवेदन लंबित रखे जाने के कारण जमीनों की रजिस्ट्री नहीं हो पा रही है। संबंधित लोगों को अनुमति के लिए चक्कर पर चक्कर काटना पड़ रहा है। इसके अभाव में रजिस्ट्री नहीं हो पाने के कारण जहां जरूरतमंद लोगों को भटकना पड़ रहा है वहीं सरकार को होने वाले राजस्व आय की भी क्षति हो रही है।
वित्तीय वर्ष 2022-23 समाप्ति की ओर है। मार्च माह के अंत तक पूर्व स्टांप ड्यूटी की दर से रजिस्ट्री हो सकेंगे और नया वित्तीय वर्ष प्रारंभ होने के साथ ही नए नियम लागू हो जाएंगे। इनमें जमीनों की रजिस्ट्री, खरीदी- बिक्री करने के इच्छुक लोगों पर अतिरिक्त आर्थिक भार भी पड़ेगा। ऐसे में वे लोग जिन्होंने डायवर्टेड (परिवर्तित) भूमि विक्रय की अनुमति हेतु आवेदन लगाया है, उनके आवेदन बेवजह लंबित रखे जाने के कारण परेशानियां हो रही हैं।
एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि परिवर्तित भूमि विक्रय अनुमति के लिए कलेक्टर के समक्ष आवेदन किए गए थे। कलेक्टर ने इन आवेदनों को अग्रिम जांच व कार्रवाई के लिए एसडीएम के पास अग्रेषित किया और वहां से तहसील न्यायालय में आवेदन आकर महीनों से लंबित हैं। प्रक्रिया के अनुसार डायवर्टेड भूमि विक्रय अनुमति के आवेदन कलेक्टर- एसडीएम- तहसीलदार से होते हुए अंत में पटवारी के पास पहुंचते हैं। इसके बाद इसी क्रम में वापस लौट कर कलेक्टर के पास विक्रय अनुमति के लिए संबंधित आवेदन, प्रतिवेदन के साथ भेजे जाते हैं। इस तरह के सैकड़ों आवेदन तहसीलदार न्यायालय और पटवारी दफ्तर में अटके पड़े हैं।
तमाम तरह की प्रक्रियाओं को पूरा करने और एनओसी लेने के बाद भी परिवर्तित भूमि विक्रय के संबंध में सैकड़ों अनुमति आवेदन लंबित होने के कारण इसका सीधा असर सरकार को रजिस्ट्री के एवज में स्टांप ड्यूटी के जरिए प्राप्त होने वाले राजस्व के नुकसान के रूप में भुगतना पड़ रहा है। सूत्र बताते हैं कि बेवजह ऐसे आवेदनों को लटकाए जाने के पीछे एक बड़ी वजह अघोषित तौर पर वसूली है और भेंट-चढ़ावा नहीं देने के कारण आवेदनों को कोई न कोई कारण बताकर या बिना वजह व्यवस्था का हवाला देकर लंबित रखे जाने की परंपरा को निभाया जा रहा है। बता दें कि राजस्व विभाग की कार्यशैली को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी नाराजगी व्यक्त करने के साथ-साथ चेतावनी भी दी है। इसके बाद भी कुछ राजस्व अधिकारियों और कर्मचारियों पर इस चेतावनी का असर नहीं पड़ रहा है। अनुमति के लिए कतार में लगे लोग चाह कर भी अपनी बात और पहचान खुलकर नहीं रख पा रहे हैं क्योंकि उन्हें इस बात का भी डर है कि उनके मामले लटका न दिए जाएं।