कोरबा (खटपट न्यूज)। तीन एकड़ जमीन एसईसीएल की खदान के लिए देने के बाद बदतर जिंदगी जी रहे 80 प्रतिशत विकलांग हो चुके बंशीदास महंत ने 5 बच्चों के साथ इच्छामृत्यु की अनुमति शासन-प्रशासन से मांगी है। संवेदनशील इस मामले में एसईसीएल के अधिकारियों ने प्रोफेशनल रवैया अपनाया जबकि कलेक्टर संजीव झा ने संवेदनशीलता दिखाते हुए बंशीदास को इच्छामृत्यु की राह पर जाने से न सिर्फ रोका बल्कि उसके पुत्र को निजी एजेंसी में नौकरी देने का निर्देश देकर राहत प्रदान किया है।
कलेक्टर की जन चौपाल में विगत दिनों पहुंचकर इच्छा मृत्यु की मांग करने वाले विजय नगर कोसमंदा निवासी बंशी दास महंत को आज पुन: पहुंचने पर कलेक्टर संजीव झा ने काफी संजीदगी से समझाईश दिया कि इच्छा मृत्यु किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। समस्याओं के कारणों को जानकर उनका निराकरण करके ही समस्या को सुलझाया जाता है। कलेक्टर ने बंशीदास की रोजगार और परिवार के पालन पोषण से संबंधित समस्याओं के निराकरण के लिए उनके पुत्र को एसईसीएल कुसमुण्डा कोयला खदान क्षेत्र में किसी निजी एजेंसी में नौकरी दिलाने के निर्देश एसईसीएल के अधिकारी को दिये। जन चौपाल में ही कुसमुण्डा के महाप्रबंधक को फोन लगाकर तत्काल नियोजित करने के निर्देश दिये। कलेक्टर ने कहा कि उनके भूमि अधिग्रहण से संबंधित प्रकरण हाईकोर्ट में लंबित है। प्रकरण के हाईकोर्ट से निराकरण पश्चात् नियमानुसार प्रबंधन द्वारा रोजगार एवं बसाहट के संबंध में कार्यवाही की जाएगी, तब तक प्रशासन द्वारा परिवार के भरण पोषण में सहयोग के लिए पुत्र को निजी एजेंसी में नियोजित करने में सहयोग किया जा रहा है।
0 यह है मामला, बंशीदास ने उठाए कई सवाल
दरअसल बंशी दास के पिता शक्ति दास पिता मोहर दास कोसमंदा स्थित खसरा नंबर 438/1 क /1 रकबा 3 एकड़ शासकीय भूमि पर काबिज रहे और इसका लगान 1975-76 से 1986 तक शासन के खजाने में जमा किया। एसईसीएल प्रबंधन द्वारा वर्ष 1983-84 में जंगल मद की इस जमीन सहित कुल रकबा 77.36 एकड़ मध्यप्रदेश शासन के स्वामित्व की भूमि का अर्जन किया। बंशीदास के पिता को 25 जून 1986 में शासन द्वारा उक्त खसरा और रकबा की शासकीय जमीन का भू-स्वामी घोषित किया गया। पूर्व कब्जा और लगान देने तथा भू-स्वामी हक मिलने के आधार पर एसईसीएल में नौकरी, मुआवजा व बसाहट के लिए आवेदन दिया गया। इस संबंध में विभिन्न न्यायालयों से एसईसीएल को आदेशित भी किया गया किन्तु राहत नहीं मिली। प्रबंधन अब कह रहा है कि भूअर्जन के समय उक्त जमीन शासकीय थी इसलिए अधिकार नहीं बनता, वहीं यह भी स्वीकारा है कि वर्ष 1990 के दशक में कई शासकीय पट्टेदारों को मुआवजा व रोजगार दिया गया है जिसे दस्तावेज साक्ष्य के आधार पर अस्वीकार करना संभव नहीं है। इसे मजबूत कारण बताकर बंशीदास ने नौकरी मांगा है जबकि प्रबंधन इसे दरकिनार करते हुए पूर्व के विधि-विरुद्ध कार्य को पुन: विधि संगत नहीं ठहरा रहा। हालांकि मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है लेकिन एसईसीएल प्रबंधन ने तत्कालीन नायब तहसीलदार के अलावा समय-समय पर बंशीदास को मुआवजा, रोजगार, बसाहट व अन्य सुविधा प्रदाय करने हेतु दिए गए आदेश को दरकिनार कर दिया। बंशीदास ने सवाल उठाया है कि जब उसके पिता की काबिज जमीन एसईसीएल ने अधिग्रहण कर लिया तब 1986 में शासन ने भूस्वामी अधिकार क्यों और कैसे दिया, एसईसीएल ने प्रकाशित ईश्तहार पर आपत्ति क्यों नहीं जताई? शासकीय भूमि पर काबिज अन्य लोगों को किस आधार पर नौकरी, मुआवजा व सुविधाएं दी गई, प्रताड़ना सिर्फ उसे ही क्यों मिल रही है।
बंशीदास ने कहा है कि पुराने अर्जन नीति पर नौकरी नहीं दी गई तब उसने नई नीति के तहत नौकरी और मुआवजा मांगा जिसे पुराने नियमों का हवाला देकर दरकिनार कर दिया गया और अब इसी को आधार बनाकर पूर्व के न्यायालयीन आदेशों का उल्लंघन किया जा रहा है जबकि प्रशासन से पूर्णत: सत्यापन कराने के बाद ही एसईसीएल नौकरी देता है तो पूर्व में जब प्रशासन-शासन ने सत्यापित कर दिया तो भी नौकरी क्यों नहीं दी गई। हालांकि प्रबंधन की ओर से जनसंपर्क अधिकारी डॉ. सनीश कुमार ने यह भी बताया है कि बंशीदास को जीविकोपार्जन के लिए गेवरा क्षेत्र की महिला मंडल समिति द्वारा आटा चक्की व अन्य दुकान संचालित करने का कार्य दिया गया था। बंशीदास का कहना है कि आटा चक्की और नौकरी में काफी अंतर है। उसे बाद में बिजली बिल और किराया पटाने के लिए कहा गया जो कि संभव नहीं था और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में जिन्हें इस तरह का रोजगार दिया गया है उनका किराया और बिजली बिल माफ है। बंशीदास ने कहा है कि उसे टार्गेट किया गया है क्योंकि वह एसईसीएल की प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाता आया है। अब उसे हाईकोर्ट से उम्मीद है।