- शहरी वातावरण को शुद्ध रखने और सांस्कृतिक महत्व के पेड़ों को सहेजने की अनोखी पहल
रायपुर (खटपट न्यूज)। हममें से कितने ही लोगों ने बचपन में बरगद की शाखाओं पर लटककर झूले का आनंद लिया होगा। दादी-नानी से कदंब के पेड़ पर खेलने वाले भगवान श्रीकृष्ण की कहानी भी सुनी होगी। इसके अलावा अपने बुजुर्गों को पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाते हुए, चीटियों के लिए शक्कर रखते हुए भी देखा होगा। पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण ये पेड़ जैवविविधता और इकोसिस्टम के लिए भी अहम हैं। जहां एक तरफ प्राकृतिक औषधि के रूप में नीम को सर्वोत्तम माना गया है, तो वहीं बरगद को ऑक्सीजन का खजाना भी कहा जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार पीपल के वृक्ष पर सभी देवी-देवताओं का वास होता है। यानी कि यह कई गुणों से भरपूर है। लेकिन शहरीकरण के दौर में हमारे यह सांस्कृतिक धरोहर कहीं खोते जा रहे हैं। शहरों में पेड़-पौधों को बचाने, बेहतर इकोसिस्टम को डेवलप करने और सांस्कृतिक महत्व के इन पेड़ों को फिर से गुलज़ार करने की मुहिम छत्तीसगढ़ में शुरू की जा रही है।
0 जन्माष्टमी से होगी छत्तीसगढ़ में ‘कृष्ण-कुंज’ योजना की शुरुआत
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जन्माष्टमी के अवसर पर ‘कृष्ण-कुंज’ योजना का शुभारंभ करने जा रहे हैं। इसके तहत हर नगरीय निकाय में न्यूनतम एक एकड़ की जमीन पर ‘कृष्ण-कुंज’ विकसित किए जाएंगे। जहां नीम, पीपल, बरगद और कदंब जैसे सांस्कृतिक महत्व के पेड़ों का रोपण किया जाएगा।
प्रदेश के मुखिया ने ‘कृष्ण-कुंज’ योजना के उद्देश्यों को लेकर कहा कि, “वृक्षारोपण को जन-जन से जोड़ने, अपने सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और उन्हें विशिष्ट पहचान देने के लिए इसका नाम ‘कृष्ण-कुंज’ रखा गया है। विगत वर्षों में शहरीकरण की वजह से हो रही अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से इन पेड़ों का अस्तित्व खत्म हो रहा है। आने वाली पीढ़ियों को इन पेड़ों के महत्व से जोड़ने के लिए ‘कृष्ण-कुंज’ की पहल की जा रही है।”
सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ में हर एक पर्व प्रकृति और आदिम संस्कृति से जुड़ा हुआ है। इनके संरक्षण के लिए ही यहां के तीज-त्यौहारों को आम लोगों से जोड़ा गया है। और अब ‘कृष्ण-कुंज’ योजना के माध्यम से इन सांस्कृतिक महत्व के पेड़ों को सहेजने की अतुलनीय पहल हो रही है। जो आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर कल की ओर ले जाएगी और एक नए छत्तीसगढ़ के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएगी।