रायपुर (खटपट न्यूज)। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में वनों का स्थान हमेशा पूजनीय रहा है। यहाँ कई त्यौहारों में वृ़क्षों की पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ के निवासी परम्परागत वृक्ष संरक्षण संस्कृति का पालन करते आये हैं। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा वनों से आक्षादित है।
लगातार बढ़ते शहरीकरण से शहरी क्षेत्रों में वृक्षों की कटाई बढ़ी है। गांव की अपेक्षा शहर ज्यादा विकसित होते हैं। पीने के पानी से लेकर परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं की तलाश में एक बढ़ी ग्रामीण आबादी शहरों की तरफ खिंची चली आती है। इस बड़ी आबादी के आवास तथा फसल के लिए कई पेड़ काटे जाते हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण भी वनों की कटाई बढ़ी है।
नेचर जर्नल में प्रकाशित शोध लेख एक बढ़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। इस अध्ययन ने यह दावा किया है, 1992 से 2015 के बीच शहरीकरण के कारण दुनियाभर में 35 मिलियन हेक्टेयर वन काट लिये गये हैं। यह दुनियाभार में बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं का कारण हो सकता है। वनों की कटाई से लगातार वैश्विक तपन का खतरा भी बढ़ता जा रहा है।
इसी बीच छत्तीसगढ़ सरकार 19 अगस्त 2022 को कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण कुंज योजना की शुरूआत करने जा रही है। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य शहरी क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण है।
इस योजना के दौरान छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों में लगभग 150 नगरीय निकायों पर कृष्णकुंज के लिए जगहें सुनिश्चित कर ली गई हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के आदेशानुसार प्रत्येक कृष्णकुंज कम से कम एक एकड़ जमीन पर शुरू किया जायेगा।
इस योजना के द्वारा छत्तीसगढ़ सरकार धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व वाले औषधीय पेड़ों के संवर्धन का प्रयास शुरू करना चाहती है। मुख्यमंत्री इस योजना को जन जन का मिशन बनाना चाहते हैं। छत्तीसगढ़ में कृष्ण जन्माष्टमी उत्साह से मनाया जाता है। इसीलिए इस योजना का नाम कृष्णकुंज रखा गया है।
कृष्णकुंज में पीपल, बरगद, नीम और कदम जैसे सांस्कृतिक महत्व वाले जीवनदायी वृ़क्ष लगाये जायेंगे। ये सारे वृक्ष हमारी संस्कृति में देव तुल्य तो हैं ही, साथ ही ये सभी पेड़ हमारे पर्यावरण से कार्बनडाइआक्सायड की बड़ी मात्रा का अवशोषण करते हैं। हमारे वातावरण में कार्बनडाइआक्सायड बढ़ने से पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है।
एक शोध के अनुसार भारत में बाहर से लाकर लगाये गये पेड़ों के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा है। नीलगिरी, गुलमोहर और चीड़ जैसे पेड़ भारत के जलवायु के अनुरूप नहीं है, जिससे लगातार हमारे वातावरण में परिवर्तन हो रहें हैं। इन खतरों से बचने के लिए मुख्यमंत्री ने कृष्णकुंज में परम्परागत और क्षेत्रीय पौधों को भी रोपने का निर्देश दिया है। आम, इमली, चार, तेंदू और हर्रा जैसे पेड़ हमारे परम्परागत पेड़ हैं। इन पेड़ों में औषधीय गुण तो हैं ही यह हमारे पर्यावरण संतुलन के लिए भी आवश्यक है।
शिवपुराण उमा संहिता -117 में संस्कृत का एक श्लोक है, अतीतानागतान् सर्वान् पितृवंशांस्तु तारयेत् । कान्तारे वृक्षरोपी यस्तस्माद् वृक्षांस्तु रोपयेत् ॥
जिसका अर्थ है – जो वीरान एवं दुर्गम स्थानों पर वृक्ष लगाते हैं, वे अपनी बीती व आने वाली सम्पूर्ण पीढ़ियों को तार देते हैं ।