0 बिलासपुर,चाम्पा,रायपुर के लोगों को मजदूर बताकर कर दिया बोगस भुगतान
0 निष्पक्ष जांच हुई तो खुल सकती है कलई
कोरबा-पाली(खटपट न्यूज) तत्कालीन कटघोरा डीएफओ शमा फारुखी के कार्यकाल में भ्रष्टाचार को लेकर सुर्खियों में छाए रहने वाले कटघोरा वन मण्डल और इसके अंतर्गत पाली रेंज के रेंजर के एन जोगी के भी हौसले इतने बुलंद कि वे अपने पदस्थापना के दौरान ही भ्रष्टाचार के मायाजाल को फैलाते हुए ईएसआईपी योजना के तहत लाखों रुपए के फर्जी भुगतान को अंजाम दे गए।
पाली वन परिक्षेत्र में विश्व बैंक की महत्वकांक्षी योजना ईएसआईपी के तहत बतरा सर्किल में बिना काम कराए वर्ष 2020- 21 के दिसम्बर माह में 94 लाख रुपए का भुगतान फर्जी प्रमाणक के सहारे कर दिया गया। केंद्र शासन की महत्त्वपूर्ण ईएसआईपी (पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं में सुधार परियोजना) जिले भर में कटघोरा वन मण्डल अंतर्गत पाली रेंज के बतरा सर्किल में एकमात्र संचालित है। सूत्रों के मुताबिक यहां 1300 हेक्टेयर वनक्षेत्र में फेंसिंग,मरम्मत,गेवियन मरम्मत,ठूठ एकलीकरन सहित वनों के संरक्षण-संवर्धन व सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य के लिए चालू प्रोजेक्ट अवधि 2019 से 2022 तक के लिए 1231 लाख रुपए की स्वीकृति हुई थी। कार्य प्रारम्भ तात्कालीन रेंजर प्रहलाद यादव के समय हुआ था लेकिन रेंजर के एन जोगी ने अपने पदस्थापना के दौरान ही मजदूरों का नाम परिवर्तन कर लाखों की राशि का बोगस भुगतान कर दिया। जिन मजदूरों के नाम पर भुगतान किया गया उसमें स्थानीय लोगों का नाम नही है और अधिकांश बिलासपुर,चाम्पा,रायपुर के लोगो का नाम फर्जी ढंग से मस्टररोल में भरकर मिलीभगत से भारी भरकम राशि का बन्दरबांट कर लिया गया। विश्वसनीय सूत्रों के मुताबित पाली में ईएसआईपी योजना को वन अफसर चारागाह बना चुके है। इस योजना के तहत बतरा सर्किल में 2019 से कार्य प्रारम्भ हुए और आश्चर्यजनक ढंग से एक वर्ष में ही 4 करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर दी गई जबकि बतरा सर्किल के अंतर्गत के ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग ने क्या कार्य करवाया है उन्हें कोई जानकारी नही है। इस तरह पूरा भुगतान संदेह के दायरे में है। आखिर वृहद रूप से हुए भ्रष्टाचार के लिए रेंजर को किसका संरक्षण प्राप्त है, यह निष्पक्ष जांच में ही खुलासा हो सकता है।
0 पुराने मामले भी सुर्खियों में : यहां यह बताना लाजिमी है कि कटघोरा वन मंडल के पुराने मामले भी अभी तक सुर्खियों में बने हुए हैं। स्टॉप डेम से लेकर मजदूरी का भुगतान, सप्लायर और ठेकेदारों की राशि का भुगतान, पौधों की ढुलाई की राशि का भुगतान से लेकर अन्य कई तरह के भुगतान लटके हुए हैं। तालाबों की खुदाई में फर्जी मजदूर लगा कर उनको भुगतान करने के बाद राशि निकालकर बंदरबांट कर ले जाने का भी मामला सुर्खियों में है। डीएफओ शमा फारुखी के साथ हुई तनातनी के बाद आनन-फानन में जो जांच शुरू कराई गई उसका भी कोई नतीजा अब तक सामने नहीं आ पाया है। डीएफओ का तबादला तो कलेक्टर से हुई खींचतान के बाद कर दिया गया लेकिन मामलों की परतें उखड़ने के साथ-साथ रेंजर और डिप्टी रेंजरों के द्वारा संरक्षण में की गई गड़बड़ियों की पोल खुलना बाकी है। नई डीएफओ प्रेमलता यादव से ऐसे मजदूरों की अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हैं जो भुगतान के लिए भटक रहे हैं। धजाक से बोटोपाल के मध्य डब्ल्यूबीएम सड़क के कार्य में मजदूरी करने वाले मजदूर भी शामिल हैं। मुनारा के नाम पर किया गया बड़ा घोटाला भी परिणाम के इंतजार में है जो काम करने के बाद भुगतान के लिए चक्कर पर चक्कर काट रहे हैं। तत्कालीन रेंजर और डिपो प्रभारी अश्विनी चौबे के द्वारा मुनारा निर्माण और वॉच टावर निर्माण में भारी गोलमाल किया गया है और वे लगातार मुनारा के नाम पर जानकारी देने से बचते आ रहे हैं। लगभग 40 लाख रुपए मुनारा के नाम पर कागजों में निर्माण कर गोलमाल कर दिए गए हैं। गेवरा- पेंड्रा रोड रेल कॉरिडोर का काम शुरू होने के साथ ही मुनारा के घोटालों का राज भी धीरे-धीरे दफन होता जा रहा है और इसके साथ ही इनकी कारगुजारी पर पर्दा भी पड़ने लगा है।