कोरबा(खटपट न्यूज़)। शासन-प्रशासन ने जनता के उपयोग के सामानों की कीमतें निर्धारित कर रखी हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि कोई भी उत्पाद एमआरपी दर से अधिक कीमत में बेचने पर कार्यवाही का प्रावधान है वैसा ही खनिज पदार्थों के मामले में भी नियम कायदे बनाए गए हैं।शासन- प्रशासन के इन नियमों का मौन सहमति से खुला उल्लंघन हो रहा है। राहत भरी बात है कि यह उल्लंघन कम कीमत पर है लेकिन जेब तो जनता की कट ही रही है।
मामला रेट घाटों से जुड़ा हुआ है। कोरबा शहर के सीतामढ़ी मोती सागर पारा रेत घाट और भंडारण क्षेत्र को मिली अनुमति के मामले में की गई पूर्व शिकायतों के बाद घाट को काफी विलंब से जैसे-तैसे चालू किया/कराया जा सका है। इस बीच नौबत यहां तक आ गई कि ठेकेदारों के एसोसिएशन ने सरकारी कार्यों पर रोक लगाने की मांग तक कर डाली। लोगों ने रेत के लिए हाय तौबा मचाना शुरू किया और ठेकेदार ने भी काफी ऊंची पहुंच जुटाकर जैसे-तैसे घाट को चालू करा लिया। बताया जा रहा है कि भंडारण के लिए पास में ही जगह चिन्हित कर ली गई है लेकिन रेत का रेट मनमाना फिर भी लिया जा रहा है।
शासन द्वारा प्रति ट्रैक्टर यानी 3 घन मीटर रेत की कीमत 491 रुपए तय की गई है जिसमें रेत को ट्रैक्टर में लोड करवा कर देना शामिल है। हाल ही में प्रारंभ हुए घाट से फिर वही पुराना ढर्रा शुरू हो गया है जिसमें 491 की रेत के लिए रायल्टी पर्ची उसी कीमत की काटी जा रही है लेकिन 1000 रुपये लिया जा रहा है। कुछ ऐसे भी ट्रैक्टर निकाले जा रहे हैं जिनसे रॉयल्टी शुल्क नहीं लिया जा रहा और बिना पर्ची के 500 रुपए में रेत दी जा रही है।
घाट से ही खबर मिली कि आज सुबह 10 बजे सद्दाम नामक युवक ट्रेक्टर लेकर घाट पहुंचा था। उसे 491 पर 1000 देने कहा गया जो नहीं देने व निर्धारित राशि लेने व रेत लोड करने की बात पर पर्ची काटने वाले से हाथापाई हो गई। कर्मी ने कॉलर पकड़ लिया तो लोगों ने बीच-बचाव किया। हालांकि सद्दाम ने किसी पचड़े में फंसने से बचते हुए थाना में शिकायत नहीं की लेकिन मामला तो गंभीर है ही।
0 आखिर प्रशासन क्या कर रहा : संतोष
इसकी शिकायत वार्ड के पार्षद संतोष लांझेकर को मिली थी। उन्होंने आज सुबह घाट पर पहुंचकर सभी ट्रैक्टरों को खड़े कराकर रायल्टी पर्ची का परीक्षण किया। उनके संज्ञान में यह बात लाई गई की 491 के बदले 1000 रुपये लिया जा रहा है। हालांकि आज जब पार्षद मौके पर पहुंचे तो बिना रॉयल्टी के निकाले जाने वाले ट्रैक्टरों की भी बाकायदा पर्ची काटना शुरू किया गया। पार्षद ने इस बात पर हैरानी जताई कि जब शासन ने 491 रुपये की दर निर्धारित कर रखी है तो 1000 क्यों लिया जा रहा है? क्या जिला प्रशासन, खनिज विभाग के अधिकारी शासन के दर से अनजान हैं। उनके द्वारा आए दिन मिल रही शिकायतों पर संज्ञान क्यों नहीं लिया जा रहा है। पार्षद ने कहा है कि जब एमआरपी दर से ज्यादा कीमत में सामान बेचने पर कार्रवाई हो सकती है तो रेत के मामले में ऐसा क्यों नहीं? उन्होंने यह भी कहा कि आम जनता की जेब में अप्रत्यक्ष रूप से जो डाका डाला जा रहा है, उसके लिए खुद जनता को भी चिंता करनी चाहिए। पहले जो रेत 3000 से 4000 में मिला करती थी, वह नियमतः 491 रुपये में मिलनी चाहिए जिसे अभी भी दर बढ़ाकर लिए जाने से रेत की कीमत 2000 से 2200 कायम है। बिना रायल्टी के 1500 में रेत मिल रही है।
0 न मामा से काना मामा का तर्क
जनता यह जानकर खुश है कि चलो पहले से तो कुछ सस्ती रेत मिल रही है लेकिन कान इधर से पकड़ो या उधर से डाका तो जेब पर पड़ ही रहा है। लोग ना मामा से काना मामा की तर्ज पर इस रेत घाट से काम चला रहे हैं।ठेकेदार भी खुश हैं कि चलो तरदा से मंगाई जाने वाली रेत से छुटकारा तो मिला लेकिन उनका स्टीमेट तो अभी भी गड़बड़ा ही रहा होगा। महंगी रेत की भरपाई किस तरह होगी, यह गुणवत्ता में एडजस्टमेंट से पता चलता है। रेत के रेट का अंतर भले कम हो गया हो पर लूट-खसोट जारी है। कहना गलत नहीं होगा कि कुल मिलाकर प्रशासनिक उदासीनता/जानबूझकर अनदेखी का पूरा-पूरा फायदा उठाया जा रहा है।
00 सत्या पाल 00 (7999281136)