कोरबा, (खटपट न्यूज)। सरकार द्वारा शासकीय स्कूल के छात्र-छात्राओं के लिए वितरण हेतु प्रदाय किए जाने वाले गणवेश को लेकर बड़ा खेल जिले और कोरबा खंड में उजागर होते-होते रह गया है। यदि निष्पक्ष जांच हुई तो बड़ा मामला सामने आएगा और लीपापोती हुई तो क्लीन चिट मिल जाएगी या किसी पर छोटी-मोटी कार्रवाई कर पल्ला झाड़ लिया जाएगा। जांच और नतीजा जो भी हो लेकिन हल्ला मचने पर बचे हुए गणवेश का एडजस्टमेंट कर कमाई की कोशिश जरूर नाकाम हो गई।
शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक शासन द्वारा हर साल बच्चों के लिए गणवेश भेजे जाते हैं। जिले में भी इसकी आपूर्ति लाखों की संख्या में होती है। जिले में 1 लाख 48 हजार 683 गणवेश का वितरण करना अधिकारियों के द्वारा बताया गया है जो कि प्राप्त आवंटन का शत प्रतिशत वितरण है। इसके बावजूद कोरबा खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय के बाबू धीरज आर्या के ग्राम दादरखुर्द निर्माणाधीन मकान में नए गणवेशों का गठ्ठर नजर आया। मामला उछला तो इसे निकटस्थ नकटीखार के नाला में बहा दिया गया और मकान से कुछ भी बरामद नहीं हुआ। यहां तक कि यहां रखे बर्तन, टाटपट्टी, पुस्तकों के भी ढेर ठिकाने लगा दिए गए। इस मामले में बताया जा रहा है कि गणवेश का बड़ा खेल कुछ इस तरह होता है कि आवंटन के लिए प्राप्त पूरे गणवेश नहीं बांटे जाते बल्कि कई स्कूलों में तो जोड़ी की बजाय एक-एक ड्रेस दे दिया जाता है। इस तरह बचे ेहुए ड्रेस को भंडारित रखने के बाद अगले वर्ष के लिए होने वाली मांग में इस बचत ड्रेस को घटाकर कम मांग की जाती है और उक्त बचत ड्रेस को एडजस्टमेंट कर इसकी राशि डकार ली जाती है। इस तरह बचत ड्रेस की राशि जेब में डालने का खेल इस बार भी खेलने की मंशा थी जो नाकाम हो गई। सूत्र बताते हैं कि पिछले वर्ष कोरोना काल में गणवेशों का पूर्ण वितरण नहीं किया गया बल्कि कागजों में इसे पूरा बताया गया। इसी तरह टाट-पट्टी का भी खेल होता है जिसमें स्कूल के प्रधान पाठक द्वारा दरी तो सरकारी उठाई जाती है लेकिन इसे बाजार से खरीदने का बिल लगाकर भुगतान प्राप्त कर लिया जाता है।
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