कोरबा (खटपट न्यूज़)। जंगल की जमीन पर बरसों से काबिज लोगों को वन अधिकार अधिनियम के तहत जमीन का पट्टा बांटा जाता है लेकिन कोरबा एक ऐसा जिला है जहां प्रशासन ने पट्टा नहीं बल्कि प्लॉटिंग की तर्ज पर वन भूमि टुकड़ों में बांट दी है। वन पट्टा हितग्राहियों की सूची देखने से कम पढ़ा-लिखा भी इसे सहज ही समझ जाएगा फिर ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों ने ऐसा कैसे कर दिया/होने दिया ? अचरज तो इस बात का है कि वनवासियों ने बिल्कुल नाप-जोख कर एक समान क्षेत्रफल में ही कैसे कब्जा किया ? क्या वे टेप से जमीन नापकर बराबर-बराबर कब्जा किये थे? या कब्जा करने के बाद इन्हें कम-ज्यादा जमीन देने की बजाय समान रूप से भूमि हक प्रदान किये गए?
देश भर में वन भूमि पर काबिज आदिवासियों और अन्य समुदायों को भू-स्वामी हक देने केंद्र सरकार द्वारा 15 दिसम्बर 2006 को वन अधिकार अधिनियम पारित किया गया। छत्तीसगढ़ में पूर्व की भाजपा सरकार ने वन अधिकार अधिनियम के तहत पट्टे के लिए जमा किये गए लाखों आवेदनों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। तब इस मुद्दे को लेकर विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार को जमकर घेरा। अब कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ़ में काबिज हुई तब यही वन अधिकार अधिनियम शासन-प्रशासन के लिए गले की हड्डी बन गया है। दरअसल वन अधिकार पट्टे को लेकर प्रदेश भर के जिला प्रमुखों और नोडल अधिकारियों को राजधानी में तलब कर कार्यशाला में नए सिरे से नियम- कायदों की जानकारी देते हुए वन पट्टे के लिए जमा आवेदनों की फिर से समीक्षा करने के निर्देश दिए गए। इसके बाद प्रदेश भर में समीक्षा अभियान चलाया गया। इस दौरान आंकड़ा बढ़ाकर सरकार को खुश करने के फेर में जिले के शीर्ष अधिकारियों द्वारा राजस्व और वन अमले पर भरपूर दबाव बनाया गया। इसका नतीजा रहा कि प्रदेश भर में लाखों वन अधिकार पट्टे बन गए। अकेले कोरबा जिले में 40 हजार से अधिक वन पट्टे बांटे गए, जो प्रदेश में बांटे गए कुल पट्टों का 10 फीसदी है।
0 किसानों को बराबर बांट दी जमीन
जिले में वन अधिकार अधिनियम के तहत बांटे गए पट्टों की सूची पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि प्रशासन ने पट्टा नहीं बल्कि प्लॉट काटकर उन्हें जमीनें समान टुकड़ों में बांट दी है।अनेक गांवों में तो एक ही कंपार्टमेंट में दर्जन भर या उससे कहीं अधिक लोगों को एक ही समान क्षेत्रफल की जमीन का पट्टा दिया गया है। ऐसा कैसे हो सकता है कि इतने सारे लोगों ने एक ही क्षेत्रफल की जमीन पर कब्जा किया हो। हकीकत तो यही है कि अधिकारी व सरकार की नजर में अच्छा बनने व आंकड़ा बढ़ाने के फेर में संबंधित अमले ने आदिवासियों की सूची बनाकर उन्हें वन विभाग की जमीन बराबर-बराबर काटकर बांट दिया है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश भर में 4 लाख 84 हजार व्यक्तिगत पट्टे बांटकर देश भर में सर्वाधिक पट्टे बांटने वाले राज्यों की सूची में जगह तो बना ली पर इसके कारण जो गड़बड़ी हुई, उसका क्या?
कोरबा जिले में कुल 42093 वन अधिकार पट्टे हितग्राहियों को बांटे गए। पांचवीं अनुसूची के कोरबा जिले में पहली नजर में ही गड़बड़ियां दिख जाती हैं। ग्राम अमलडीहा, अरेतरा, अरसेना, एलोंग, कछार जैसे अनेक गांव हैं, जहां दर्जनों लोगों को एक समान क्षेत्रफल की जमीन का पट्टा बांटा गया है। इतना ही नहीं एक ही नाम के कई पट्टे बांटे गए हैं। पात्र लोगों को दावे के बावजूद एक की जगह अलग-अलग जमीन का पट्टा दिया गया है। पूछने पर कहा जाता है कि एक हितग्राही को 10 एकड़ जमीन का पट्टा देने का प्रावधान है, इसलिए एक ग्रामीण को अलग-अलग जगह पर काबिज जमीन का पट्टा दिया गया है।
0 आवेदन के बाद भी नहीं बंटा पट्टा
कोरबा जिले के ऐसे कई गांव भी हैं जहां बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने काबिज जमीन के पट्टे के लिए आवेदन किया, लेकिन उन्हें पट्टा दिया ही नहीं गया। जल, जंगल, जमीन के लिए संघर्ष करने वाली संस्था एकता परिषद की कार्यकर्ता निर्मला कुजूर कोरबा जिला मुख्यालय से 110 किलोमीटर दूर पसान क्षेत्र के ग्राम चद्रोटी में रहती हैं। उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया और उनसे वन अधिकार पट्टे के लिए आवेदन फार्म भरवाया। ग्रामसभाओं में प्रस्ताव पारित कराया, मगर बाद में कई गांव ऐसे निकले, जहां के एक भी ग्रामीण को पट्टा नहीं मिला तेलियामार, बनखेता, केंदाडांड जैसे अनेक गांव हैं, जहां के एक भी ग्रामीण को वनाधिकार पट्टा नहीं दिया गया। अब ग्रामीणों को दोबारा आवेदन जमा करने कहा जा रहा है। निर्मला बताती हैं कि पसान के सरपंच पति रामशरण तंवर द्वारा ग्रामीणों को जमीन से संबंधित सारी औपचारिकताएं पूरी कर आवेदन जमा करने कहा जा रहा है, जबकि यह काम वनाधिकार पट्टे के लिए गठित दल का होता है।
0 ग्रामीणों को पता नहीं, कहां मिली जमीन?
वन अधिकार पट्टे के लिए बनाई गई समिति की लापरवाही अथवा परेशान करने की नीयत से ग्रामीणों को ऐसी जमीनों का पट्टा दे दिया गया है, जहां पर वे काबिज ही नहीं हैं। चंद्रोटी के मंत राम, गयादीन ऐसे ग्रामीण हैं, जो बीते डेढ़ दशक से वन भूमि पर काबिज हैं और खेती-बाड़ी कर रहे हैं, इन्हें सरकार द्वारा पट्टा भी दिया गया, मगर पट्टे में जमीन का कम्पार्टमेन्ट नंबर बदल दिया गया। हालत यह है कि इन ग्रामीणों की जमीन पर वन विभाग ने वृक्षारोपण कर दिया है, और इन्हें दूसरी जगह जमीन देने के लिए कहा जा रहा है। ऐसे ही लोगों के लिए संघर्ष कर रही निर्मला कुजूर बताती है कि पूरे इलाके में एक भी ऐसा ग्रामीण नहीं है जिसे उसके द्वारा काबिज पूरी जमीन का पट्टा दिया गया हो। अब इनसे दोबारा आवेदन भरवाए जा रहे हैं।
0 समिति में शामिल ग्रामीणों की पूछ-परख नहीं
वन अधिकार पट्टे बांटे जाने के लिए गावों में अधिकृत समितियां बनाई गईं हैं। इनमें वनपाल सचिव हैं। इसके अलावा ग्राम सचिव सहित कुल दस लोगों की समिति बनती है, इनमें से एक ग्रामीण को ग्रामसभा की सहमति से अध्यक्ष बनाया जाता है। कोरबा जिले के बड़े ग्राम पंचायतों में से एक कोरकोमा के पंच और मंडी समिति सदस्य उमेश्वर सोनी बताते हैं कि उनके पंचायत में भी ग्रामीण फत्तेसिंह राठिया की अध्यक्षता में समिति बनाई गई, मगर शासकीय अमले द्वारा समिति में शामिल ग्रामीणों को कभी पूछा ही नहीं गया। ग्रामीणों के आवेदन लेकर वनपाल ने सीधे अपनी रिपोर्ट दे दी और शासन से ग्रामीण को पट्टा मिल गया। इसका दुष्परिणाम यह रहा कि अनेक ग्रामीणों को काफी कम जमीन का पट्टा दिया गया, वहीं कुछ को तो पट्टा ही नहीं मिला। इलाके में ऐसी दर्जनों शिकायतें हैं।
0 पूरे प्रदेश का यही हाल, धूल खा रहे आवेदन
वन अधिकार पट्टे के मामले में छत्तीसगढ़ भले ही आगे चल रहा है, मगर सच तो यह है कि अब भी ग्रामीणों के हजारों आवेदन जिलों में धूल खा रहे हैं और उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पट्टे के लिए ग्रामीण मुख्यालय के चक्कर काट रहे हैं और अधिकारी उन्हें आश्वासन देकर लौटा रहे हैं।
0 शिकायत मिले तो निराकरण होगा : वाहने
इस संबंध में आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त एस के वाहने का कहना है कि सर्वे का काम वन अधिकार समिति का है। वन अधिकार समिति ग्राउंड लेबल में सर्वे कर अपनी रिपोर्ट उप समिति को देती है जिसके पश्चात उप समिति उसे अनुमोदित कर जिला समिति के पास भेजती है और जिला समिति पट्टा वितरण के लिए आदेश जारी करती है। श्री वाहने ने बताया कि यदि इस संबंध में किसी को कोई शिकायत हो तो वह पुनः आवेदन कर सकता है। यदि पट्टा वितरण में कोई गड़बड़ी उजागर होती है तो उसकी जांच कराई जाएगी।