Sunday, September 8, 2024
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वन अधिकार पट्टा से खेत भी हुआ अपना, फसल भी अपनी…मिल गया आगे बढ़ने का परमिट

0 मेहनत से उगाई फसल बेचने दूसरों पर खत्म हुई गणेश राम की निर्भरता
कोरबा(खटपट न्यूज़)। घने जंगलो के बीच रहकर पीढ़ी दर पीढ़ी जंगल की भूमि पर अपनी मेहनत से खेती किसानी कर अपने और अपने घर परिवार का पेट पालने वाले वनवासियों के लिए वन अधिकार मान्यता पत्र आगे बढ़ने के परमिट साबित हो रहे है।

कोरबा जिले के करतला विकासखंड के केरवाद्वारी वनांचल में रहने वाले गणेश राम कंवर को अपने बुजुर्गो से विरासत में मिले ऐसे ही खेत का मालिकाना हक मिलने से उनकी कई परेशानियां और चिंताएं खत्म हो गई है। अब गणेश राम कंवर के पास अपना खेत है। अपना पसीना बहाकर मेहनत से उस खेत से उपजाई गई धान की फसल भी अब पूरी तरह से गणेश राम की है। जिसे वे पूरे सम्मान के साथ शासन द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर बेचकर पूरी राशि पा रहे है। गणेश राम बताते है कि 70-80 सालो से उनके पूर्वज केरवाद्वारी वनांचल में पीपलरानी पहाड़ के तराई इलाके में जंगल की जमीन पर खेती करते आ रहे थे। कब्जे की इस लगभग एक एकड़ जमीन के टुकड़े का उनके पास ना तो मालिकाना हक था, ना ही जमीन के दस्तावेज। ऐसे में अपनी मेहनत की फसल बेचने के लिए भी उन्हें गांव के दूसरे लोगो का सहारा लेना पड़ता था। इसके ऐवज में एक बड़ी राशि उन्हें कमीशन के तौर पर दूसरे साथी किसानो को देनी पड़ती थी। राज्य सरकार द्वारा इस भूमि का वन अधिकार पट्टा मिल जाने से अब खेत का मालिकाना हक तो मिल ही गया है, इसके साथ ही धान बेचने का वैध दस्तावेज भी उनके पास है। अब अपनी पूरी फसल का पूरा दाम उन्हें प्राथमिक सहकारी समिति से मिल जाता है। उनकी एक तेरह साल की बेटी कक्षा आठवी में पढ़ रही है। वन अधिकार पट्टे के भू-दस्तावेज से गणेश राम को अब दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी मदद मिल रही है। छत्तीसगढ़ सरकार की इस योजना को गणेश राम दूरस्थ वनांचलो में रहने वाले वनवासियों के लिए विकास का नया आधार बताते है। और सरकार को इसके क्रियान्वयन के लिए धन्यवाद भी ज्ञापित करते है।


श्री गणेश राम बताते है कि उनके परिवार चार पीढ़ियोें पहले रायगढ़ राज से आकर केवराद्वारी के वनांचलो में बसा था। दादा श्री दयाराम कंवर, पिता श्री सुखसिंह कंवर, वे खुद और अब उनकी बेटी तथा भाई बंधु भी केवराद्वारी में ही रहते है। यहां की वन भूमि को साफ करके अपनी मेहनत से धान उगाते चले आ रहे है। गणेश राम बताते है कि पिता सुख सिंह सहित उन्हें भी हमेशा यह डर लगा रहता था कि ना जाने कब उनकी जीवनदायनी इस धरती के टुकड़े से उन्हे बेदखल कर दिया जाए। ना जाने कब वन विभाग उनके मेहनत से बनाए खेत पर वृक्षारोपण करने या किसी अन्य योजना के तहत काम शुरू करने का फरमान थमा दे। परंतु अब उन्हें खुशी है कि अपनी मेहनत से संवारी गई इस भूमि का मालिकाना हक उन्हें वन अधिकार मान्यता पत्र(पट्टा) से मिल गया है। अब वे अपने इस खेत में बरसात के मौसम में धान लगाते है। धान पकते ही उसे काटकर समर्थन मूल्य पर पूरे हक और सम्मान के साथ प्राथमिक सहकारी समिति में बेचते है। धान का पूरा पैसा उनके बैंक खाते मे सीधे आता है। गणेश राम ने अपनी इस जमीन पर एक छोटा तालाब भी बना लिया है। कुछ आम के पेड़ भी उन्होने अपनी इस जमीन पर लगा लिए है। वन अधिकार पट्टे से मिली अपनी इस जमीन पर अब गणेशराम सौर सुजला योजना से नलकूप खनन कराकर सब्जी की खेती भी करने का प्लान बना रहे है।

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