पिछड़ा वर्ग सर्वे में लीपापोती…! अधिकांश लोगों तक नहीं पहुंचे सर्वेयर

0 सूचना तकनीकी के गैर जानकारों को सर्वे का पता नहीं
कोरबा (खटपट न्यूज)। छत्तीसगढ़ में शासन के निर्देशानुसार अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का पता लगाने के लिए 1 सितंबर 2021 से सर्वेक्षण शुरू किया गया है। राज्य सरकार जहां इस सर्वे के प्रति गंभीरता दिखा रही है, वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार लोगों के द्वारा घर-घर तक अधिकांश पहुंच नहीं बनाई जा सकी है।

जानकारी के मुताबिक पहले ऑफ लाइन सर्वे में घर-घर जाकर मुखिया के माध्यम से निर्धारित प्रारूप को भरना था और इसके बाद ऑनलाईन सर्वे इन दिनों हो रहा है। विश्वसनीय विभागीय सूत्रों की मानें तो सर्वे कार्य में लीपापोती की जा रही है। बताया जा रहा है कि इसके लिए मतदाता सूची का उपयोग भी हो रहा है। ऑनलाईन सर्वे में बैठे लोगों के द्वारा उनके अधिकारियों के निर्देश पर मतदाता सूची से ऐसे नाम तलाशे जा रहे हैं जिनके नाम में उपनाम (सरनेम) नहीं है। ऐसे बिना उपनाम वाले नाम को पिछड़ा वर्ग की सूची में डालकर जिले में सर्वे कार्य शत प्रतिशत दर्शाने की कवायद हो रही है। अगर यह सही है तो आगामी दिनों में तैयार होने वाले सर्वे रिपोर्ट के आधार पर सरकार की नीति और योजनाओं से लेकर खर्च होने वाली राशि तथा इनके क्रियान्वयन के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे भी बड़ी बात यह होगी कि एकाएक पिछड़ा वर्ग के लोगों की संख्या बढ़ सकती है। बिना उपनाम वाले नाम को एंट्री किए जाने के कारण इसके आसार बढ़े हैं। हालांकि विभागीय तौर पर अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं किन्तु पुष्ट सूत्रों ने कहा है कि अपना परफारमेंस रेट बढ़ाने के लिए कुछ भी किया जा रहा है। जमीनी हकीकत यह है कि कुछ दिनों और कुछ क्षेत्रों को छोड़कर बहुसंख्यक ऐसे लोग हैं जिनके घरों तक न तो सर्वे की टीम पहुंची है और न ही अधिकांश लोगों को इस तरह की किसी सर्वे की जानकारी है। खासकर स्लम क्षेत्र, कालोनी क्षेत्र और रोजी-मजदूरी करने वाले आर्थिक रूप से कमजोर और पिछड़े लोग इस सर्वे से वंचित बने हुए हैं। भले ही लोग आज इंटरनेट से जुड़कर रहते हैं लेकिन स्वयं से ऑनलाईन सर्वे की भी जानकारी बहुतों को नहीं है जबकि वे इस दायरे में आते हैं। शासन-प्रशासन को चाहिए कि सर्वे की जमीनी हकीकत का पता लगाकर इसे सुचारु तौर पर क्रियान्वित कराएं।

0 निर्धारण का यह है मापदण्ड:- सर्वे के आधार पर तैयार डाटा की मदद से सरकार द्वारा ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण के लिए पहल की जाएगी। इसके लिए मापदंड तय किया गया है कि संबंधित के परिवार की वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम होनी चाहिए। उसके पास 5 एकड़ से अधिक कृषि भूमि नहीं होनी चाहिए। शहरी क्षेत्रों में 900 वर्गफुट से कम क्षेत्र का आवासीय भूखंड अथवा 1000 वर्गफुट से कम का फ्लेट होना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्र में 5 एकड़ से कम कृषि भूमि, 2000 वर्गफुट से कम क्षेत्र का मकान या आवासीय भूखंड पाए जाने पर ही आर्थिक रूप से कमजोर माना जाएगा।

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