कोरबा (खटपट न्यूज)। कोरबा जिले के कटघोरा वन मंडल के अंतर्गत केंदई वन परिक्षेत्र के लमना के निकट हाथी के बच्चे की तालाब में कथित तौर पर डूब जाने से हुई मौत की घटना को वन अमला भले ही एक घटना बताकर खामोश रह गया हो, लेकिन जिले में हाथी की 16वीं मौत की इस घटना ने विभागीय अमले द्वारा हाथियों की निगरानी और उनकी रक्षा की पोल खोल दी है। यह बात लोगों के जेहन में सीधे तौर पर उतर ही नहीं पा रही कि हाथी का बच्चा तालाब में डूब सकता है! सीसीएफ अनिल सोनी से लेकर डीएफओ शमा फारुखी प्रारंभिक तौर पर कह रहे हैं कि बच्चा तालाब में डूब गया था लेकिन वास्तविक कारण जानने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट इस मामले में अहम है जिसका इंतजार किया जा रहा है।
कटघोरा वन मंडल में बीते एक वर्ष के भीतर पहाड़ से गिरकर, दलदल में फंसकर और अभी पानी में कथित तौर पर डूबकर बच्चे की मौत की घटना हाथियों की निगरानी के लिए गठित हाथी मित्रदल की कार्यशैली से ज्यादा विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है कि आखिर उनके द्वारा अधिनस्थ कर्मियों से किस प्रकार काम लिया जा रहा है कि वे अपने कर्तव्य के प्रति उदासीन हैं। काफी समय से करीब 46 हाथियों का दल केंदई वन परिक्षेत्र में मौजूदगी दर्ज कराए हुए है लेकिन इनकी आवाजाही, इनकी गतिविधियों पर निरंतर निगाह नहीं रख पाने का खामियाजा इस घटना को माना जा सकता है। स्थानीय ग्रामवासियों के मुताबिक हाथी के बच्चे की मौत वन अधिकारियों और निगरानी दल की लापरवाही की वजह से हुई है। यह बात सामने आई है कि हाथी का बच्चा किसी तकलीफ में था और शेष हाथी उसकी पीड़ा को अपनी चिंघाड़ के रूप में दर्ज करा रहे थे लेकिन 3-4 दिन से बताई जा रही इस पीड़ा को सुनने व समझने वाला कोई नहीं था। बताया जा रहा है कि कुछ ग्रामीणों ने हाथी के बच्चे के अस्वस्थ होने की जानकारी वन अमले को दी थी लेकिन ध्यान नहीं दिया गया। जानकार बताते हैं कि हाथी जब तकलीफ में होता है तो वह चिंघाड़ता है। वैसे भी हाथी अपने बच्चे को कभी भी अलग नहीं छोड़ते और जलाशय, तालाब आदि पार कराते समय भी उसे संरक्षण देकर चलते हैं। ऐसे में यह कहना बिलकुल भी उचित नहीं लगता कि डूबने से हाथी के बच्चे की मौत हुई है। यह कहा जा रहा है कि हाथी का बच्चा तकलीफ में था और हो सकता है कि तालाब में गिरने के बाद उठ ना सका हो और पानी में ही दम घुटने से मौत हुई हो? यह भी बताया जा रहा है कि रात के वक्त जब हाथियों का दल पानी पीने के लिए तालाब के पास पहुंचा था, तभी यह घटना हुई और रात भर हाथियों की चिंघाड़ गूंज रही थी लेकिन हाथी मित्रदल, वन अमला का कोई कर्मी यह सुनने के लिए नहीं था। यदि वन अमला सही निगरानी करता तो अस्वस्थ बच्चे को उपचार का लाभ मिलता और घटना की रात भी यदि सक्रियता रहती तो बच्चे को बचाया जा सकता था।
दूसरे दिन सुबह ग्रामीणों को घटना की जानकारी हुई। वन अधिकारी भी सूचना के बाद काफी देर से घटनास्थल पहुंचे और परिस्थितियों के आधार पर डूबने से मौत होना स्वयं ही पुष्ट कर दिया। हालांकि अंतिम तौर पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही मौत की सही वजह स्पष्ट करेगा किंतु बच्चे की मौत को लेकर जांच की मांग उठने लगी है।
0 लगते रहे हैं आरोप
कटघोरा के वन अधिकारी पर विभागीय कार्यों में लापरवाही और योजनांतर्गत कराए गए कार्यों की निगरानी, भुगतान आदि को लेकर जहां आरोप पदस्थापना काल से लगते रहे हैं, वहीं यह भी जन चर्चा है कि राजधानी रायपुर के कद्दावर मंत्री की नजदीकी रिश्तेदार होना बताकर अपनी मनमानी करते आ रहे हैं। इससे पहले भी वे जहां पदस्थ रहे, वहां भी अपने कामकाज को लेकर चर्चा में रहे।