0 संसद में पेश नवीन कृषि विधेयक का विश्लेषण किया हाईकोर्ट अधिवक्ता शुशोभित सिंह ने
कोरबा/बिलासपुर(खटपट न्यूज़)। केंद्र सरकार द्वारा संसद के मौजूदा सत्र में तीन विधेयक पेश किया गया जिसे कृषि सुधार एवं कृषको के जीवन में में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाला बताया जा रहा है। इस विधेयक पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर के अधिवक्ता शुशोभित सिंह ने अपना विश्लेषण खटपट न्यूज़ से साझा किया है। पेश होने वाले ये तीन विधेयक हैं :- —
- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020,
- कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
विधिक शब्दावली की जटिलताओं से बचते हुए अगर हम एकदम साधारण शब्दों में समझे तो पहला विधेयक (1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020) यह प्रावधान करता है की कोई भी कृषक या उत्पादक अपने द्वारा उत्पादित अनाज को राज्य के भीतर या राज्य के बाहर किसी भी राज्य में बिना रोक टोक के स्वतंत्र होकर बेच पायेगा. उसे अपनी उत्पाद को अपने स्थानीय मंडी के माध्यम से बेचने की बाध्यता नहीं रहेगी। कृषि उत्पाद को खरीदने वाला कोई भी निजी व्यक्ति हो सकता है ,और वह किसी भी मात्रा में किसी भी मूल्य पर कृषक से आपसी सहमति के माध्यम से क्रय कर सकेगा. मात्रा और मूल्य निर्धारण की कोई बाध्यता नहीं रहेगी और सब कुछ कृषक और क्रेता की आपसी सहमति पर निर्भर होगा. इस विधेयक के माध्यम से बताया जा रहा है की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और मात्रा ,मूल्य,और उत्पादन सब कुछ बाज़ार तय करेगी।
दूसरा विधेयक (2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020) यह प्रावधान करता है की निजी व्यापारी किसान से संविदा ,करार करके संविदा कृषि (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) करा सकेंगे तथा उत्पादित अनाज की मात्रा उपज और मूल्य आपस में ही संविदा के माध्यम से तय कर सकेंगे. मतलब उत्पादन की मात्रा और उत्पादन का मूल्य सब कुछ कृषक और व्यापारी आपस में ही तय करेंगे। संविदा का उल्लंघन होने पर कोई भी पक्षकार सक्षम प्राधिकारी जो की स्थानीय राजस्व एसडीएम् होगा के समक्ष अपील कर सकेगा।
तीसरा विधेयक( 3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020) यह प्रावधानित करता है की आवश्यक वास्तु धान दलहन तिलहन के भंडारण और परिवहन को शिथिलीकरण किया जाएगा जिसका अर्थ है की कोई भी निजी व्यापारी अगर उसके पास समुचित संसाधन है तो वह आवश्यक वास्तु धान दलहन तिलहन को किसी भी मात्रा में भंडारण और परिवहन कर सकेगा। भंडारण और परिवहन में छूट मिलने से भंडारण किये जाने वाले मात्रा पर कोई सीमा नहीं रहेगी और वह अपनी निजी आवश्यकतानुसार और लाभ को देखते हुए किसी भी मात्रा में भंडारण कर सकेगा.
तीनो ही अधिनियम को प्रथम दृष्टया देखा जाए तो तीनो ही विधेयक किसानो के लिए लाभकारी दीखते है किन्तु सूक्ष्म परिक्षण करने पर इसके दूरगामी घातक परिणाम दिखेंगे.
सर्वप्रथम हमें यह समझना होगा की यहाँ पर बात किसी औद्योगिक उत्पादन जैसे इस्पात कपडा सीमेंट प्लास्टिक की नहीं हो रही बल्कि बात कृषि उत्पादन की हो रही है जो की अपने मूल स्वरुप में जल्दी नष्ट होनेवाला (पेरिशेबल) वास्तु की हो रही है। अर्थात यदि कोई कृषि उत्पाद अपने उत्पादन से लेकर यदि अंतिम उपयोगकर्ता तक शीघ्र नहीं पंहुचा तो वह नष्ट हो जायेगी और वह वास्तु मूल्यविहीन हो जायेगी। दूसरे शब्दों में कहे तो वह वास्तु तेजी से विक्रय होकर अपने अंतिम उपयोगकर्ता तक पहुंचना चाहिए. भारत जैसे देश में जहा की आबादी लगभग 135 करोड़ हो चुकी है वहां आबादी का लगभग 50-60 प्रतिशत हिस्सा कृषि से जुड़े हुए कार्य पर अपने आजीविका के लिए आश्रित है। इसमें भी बहुसंख्य लोग अति सूक्ष्म किसान है जिनके परिवार के पास कुल कृषि योग्य भूमि मात्र 2-5 एकड़ है. इसमें भी बहुसंख्यक वर्ग अशिक्षित है एवं प्रमुख से अनुसूचित जाती अनुसूचित जनजाति वर्ग से आते है। जिनका सरल सा जीवन गाव् या तालुका क्षेत्र तक सीमित है.
आबादी का यह वर्ग जिसे समाजवादी कल्याणकारी राज्य का संरक्षण प्राप्त था इस वर्ग को अचानक लाभ से प्रेरित, मांग एवं आपूर्ति वाली निर्मम पूंजीवादी एवं बाज़ारवादी व्यवस्था की और धकेला जा रहा है. वर्तमान व्यवस्था ऐसी है की कोई भी कृषक अपनी आवश्यकतानुसार अनाज का उत्पादन लेता है और मंडी ले जाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार को विक्रय कर देता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर विक्रय करने के बाद वह अपने बचे हुए उत्पाद को निजी व्यापारियों को विक्रय कर देता है. पहली विधेयक की नयी व्यवस्था आ जाने से कोई भी निजी व्यापारी किसी भी कृषक से किसी भी मूल्य पर कोई भी मात्रा में अनाज राज्य के भीतर या राज्य के बाहर क्रय कर सकेगा। इस व्यवस्था में न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू होगा की नहीं यह अभी तक अस्पष्ट है. क्योकि न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ अब तक केवल शासन को विक्रय करने पर ही मिलता है निजी व्यापारी को विक्रय करने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलता. अब तक की व्यवस्था अनुसार कृषि उत्पाद पर छोटे कृषको को सरकार का संरक्षण प्राप्त है और सरकार का भंडारण और परिवहन पर लगभग एकाधिकार है ,जो नयी व्यवस्था आने से समाप्त हो जायेगी. अपनी मर्जी से राज्य के भीतर या बाहर निजी व्यापारियों को विक्रय करने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं है. अगर कोई प्रदेश के बाहर का व्यापारी अपने वचन दिए गए मूल्य से पीछे हटता है तो उस अति लघु सीमान्त किसान के पास नुक्सान सहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.अभी की व्यवस्था ऐसी है की कोई भी कृषक कुछ भी उत्पादन कर ले उस उत्पादन को सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय करती ही है ,किन्तु बाज़ारवादी व्यवस्था आने से मूल्य का निर्धारण केवल मांग और आपूर्ति के सिद्धांत से होगी. अर्थात उत्पादन ज्यादा होगा और मांग कम होगी तो कम मूल्य मिलेगा और उत्पादन कम होगी और मांग ज्यादा होगी तो ज्यादा मूल्य मिलेगा ,किन्तु मूल्य का निर्धारण निजी व्ययापारियो के समूह के पास होगा.
दूसरा विधेयक जो संविदा करार कृषि (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ) को प्रोत्साहन देता है उसके अनुसार कोई निजी व्यापारी कृषक एक निश्चित मूल्य और मात्रा पर एक निश्चित फसल का उत्पादन करा सकेगा और सब कुछ लिखित करार पर हो सकेगा. यहाँ भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं है क्योकि सब कुछ लिखित करार पर आधारित होगा। अब यहाँ पर दो पक्षकारो के बीच होने वाले संविदा की स्तिथि का आंकलन कीजिये। एक वर्ग जो अति शिक्षित पहचान और पहुंच वाला व्यवसायी है और एक पक्षकार अशिक्षित लघु कृषक है. यदि आपने कभी निजी बैंक या संस्था से संविदा किया हो तो आपको यह ज्ञात होगा की संविदा पचास से भी अधिक पन्नो का होता है जिसकी शर्ते पहले से छपी हुई होती है और सारी शर्ते संस्था के पक्ष में ही होती है ,दूसरे पक्ष को केवल संविदा करार में कम से कम पचास दस्तखत करना होता है. संविदा द्विपक्षीय नहीं होती बल्कि पहले से छपी शर्तो वाले कागज़ में दस्तखत करना होता है। इसमें भी प्राकृतिक आपदा अतिवृष्टि अल्पवृष्टि ओलावृष्टि आग पशु नुक्सान से होने वाले नुक्सान के भरपाई के बारे में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है. एक सामान्य अनुभव यह है की यदि ीफसल की गुणवत्ता कम भी हो तो एक लोक कल्याणकारी राज्य कृषक हित में फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय कर ही लेती है किन्तु एक निजी कॉर्पोरट ऐसा नहीं करेगी बल्कि वह उच्च गुणवत्ता होने पर ही फसल को क्रय करेगी। .यह भी उत्पादन की मात्रा ,उसका मूल्य निजी कॉर्पोरेट ही तय करेगी. अगर वह अपने वचन से मुकर से जाए तो विवाद का निपटारा स्थानीय राजस्व एसडीएम करेगा जो पहले से ही सीमांकन नामांतरण बटवारा कानून व्यवस्था जैसे प्रकरण का विचारण कर रहा है. मतलब विवाद की स्तिथि में किसान ,जो संविदा के तहत फसल उत्पादन कर चूका है एक और लम्बी पेचीदा और खर्चीली कानूनी प्रकरण में उलझ जाएगा.
तीसरा विधेयक जो आवश्यक वास्तु संशोधन अधिनियम से सम्बंधित है इसके तहत आवश्यक वास्तु जैसे अनाज धान दलहन तिलहन जैसे वस्तुओ पर भण्डारण सीमा (स्टॉक लिमिट ) को शिथिल किया जा रहा है। .अर्थात कोई भी निजी व्यवसायी किसी भी मात्रा में अनाज धान दलहन तिलहन का भण्डारण स्टोर कर सकेगा। अर्थात वह काम कीमत पर भंडारण कर सकेगा और भाव ऊँचा मिलने पर अपनी लाभ अनुसार विक्रय कर सकेगा.
तीनो विधेयक का सार यह है की कृषि उत्पाद को भी सरकारी संरक्षण से मुक्त कर अन्य औद्योगिक वस्तुओ जैसी मांग और आपूर्ति वाली लाभ प्रेरित व्यवस्था की ओर किया जा रहा है।